देश की एकमात्र दरगाह, जहाँ हिन्दू-मुस्लिम मिलकर मानते हैं होली, कई दशकों से जारी है परंपरा
देश की एकमात्र दरगाह, जहाँ हिन्दू-मुस्लिम मिलकर मानते हैं होली, कई दशकों से जारी है परंपरा
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लखनऊ : उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के देवा स्थित सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर होली पर गुलाल की धूम होती है। हिंदू-मुस्लिम यहाँ एक साथ रंग व गुलाल में सराबोर हो जाते हैं। बाराबंकी का यह बागी और सूफियाना मिजाज होली को अन्य जगहों से भिन्न कर देता है। ऐसी ही कई रिवायतों को समेटे हुए बाराबंकी जिले से रूबरू कराती है यहां की होली।

दरअसल, सभी धर्म के लोग सूफी संत हाजी वारिस अली शाह के चाहने वाले थे। इसलिए हाजी साहब प्रत्येक समुदाय के त्योहारों में बराबर भागीदारी करते थे। वे अपने हिंदू शिष्यों के साथ होली खेल कर सूफी पंरपरा का प्रदर्शन करते थे। उनके देहांत के बाद यह परंपरा आज भी यहाँ बदस्तूर जारी है। यहां की होली में उत्सव की कमान गत चार दशकों से शहजादे आलम वारसी संभाल रहे हैं। वे बताते हैं कि यह देश की पहली ऐसी दरगाह है, जहां होली के दिन रंग और गुलाल द्वारा जश्न मनाया जाता है। 

मजहबी एकता गेट पर पुष्प के साथ चाचर का जुलूस भी निकाला जाता है। इसमें आपसी कटुता को भूलकर दोनों धर्म के लोग भागीदारी करके संत के ‘जो रब है, वहीं राम है’ के संदेश को फैलते हैं। रामनगर नगर पंचायत में होली के दिन शाम तक रंग खेलने की परंपरा है। लोगों के हुजूम होली के दिन सुबह से ही रंग-गुलाल उड़ाते हुए सड़कों पर निकल जाते हैं, जो शाम तक लगातार चलता रहता है।

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