आस्था और विश्वास का संगम हे जरुरी
आस्था और विश्वास का संगम हे जरुरी
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आज के इस युग में मनुष्य पूर्ण भौतिकता में लिप्त होकर अपने मार्ग से भटक गया है। वह मानवता को भूलने सा लगा है उसके मन से आस्था और विश्वास छूटने लगा है. अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए वह अनैतिक और कदाचारी बन चुका है। आस्था और विशवास को खो कर अंधकार की और बढ़ता चला जा रहा है.

ऐसे में सदगुरु ही एक ऐसा प्रकाश स्तंभ है. जो इन भटके हुए लोगों को नैतिकता और सदाचार के मार्ग पर ला सकता है। आस्था और विश्वास का बहुत गहरा सम्बन्ध होता है यदि आपकी अंतरात्मा में आस्था तो जग गई पर यदि विशवास नहीं है तो वह व्यर्थ है. आस्था के साथ विशवास का होना अतिआवश्यक होता है. आस्था और विशवास को जानना और इसके संगम को पहचानना जो की एक अच्छे मार्गदर्शक द्वारा संभव है. और वही मार्गदर्शक एक सच्चा गुरु होता है. जो जीवन में सही राह दिखाता है . 

इसलिए किसी ने कहा है कि- 

गुरु बिन भव निधि तरइ न कोई. 

यानी संसार सागर दुःख भरा हुआ है। उसे गुरु के बिना कोई भी पार नहीं लगा सकता है। आस्था और विशवास के साथ आगे बढ़ने की राह गुरु से प्राप्त होती है.

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