एक रईस आदमी था लक्ष्मीमल। एक बार वह भगवान महावीर के अन्तिम शिष्य जम्बूस्वामी को अपने महल में लाया। उस पवित्र व्यक्ति ने उससे कहा कि वह अब धन संग्रह करना बन्द कर दे क्यों कि वह चार पीढ़ियों से अधिक के लिए धन संग्रह कर चुका था। अब उसे मृत्यु के बाद के जीवन के विषय में सोंचना चाहिए।
जम्बूस्वामी के जाने के बाद लक्ष्मीमल यह सोंच-सोंच कर बहुत परेशान रहने लगा कि चार पीढ़ियों के बाद उसके ख़ानदान का क्या होगा ? वह चिन्ता के कारण बीमार पड़ गया और किसी भी दवाई या ईलाज से उसे कोई लाभ नहीं हुआ। उन्हीं दिनों एक धर्मात्मा साधु उनके शहर में आये। लक्ष्मीमल के मिलने वाले उसे उसके घर में ले आये। उसकी कहानी सुनने के बाद साधु ने कहा कि वह आदमी लक्ष्मीमल को ठीक कर देगा अगर कोई व्यक्ति किसी गिद्ध के घोंसले से मांस का टुकड़ा लाकर दे दे।
लक्ष्मीमल के सेवक चारों ओर निकल पड़े किन्तु वे किसी गिद्ध के घोंसले से मांस का टुकड़ा प्राप्त नहीं कर सके। क्योंकि गिद्ध कुछ भी बचाता या जमा नहीं करता। यह सुनकर लक्ष्मीमल को महसूस हुआ कि उसकी चिन्ता और बीमारी का कारण उसका परिग्रह था, अत्यधिक लोभ था, लालच था। अगर आपको भी इस कहानी से कुछ शिक्षा मिली हो तो आप भी ज्यादा लोभ लालच में न पड़े अन्यथा वो आपकी अपनी परेशानी का सबसे बड़ा कारण हो सकती है ।