भारतीय इतिहास में श्रेष्ठ शिक्षक के तौर पर जाने जाते रहेंगे ये प्रख्यात गुरु
भारतीय इतिहास में श्रेष्ठ शिक्षक के तौर पर जाने जाते रहेंगे ये प्रख्यात गुरु
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भारत में अध्यापको को सर्वोच्च दर्जा प्राप्त है। आदि काल से अध्यापको का आदर होता आया है। अध्यापक ना सिर्फ मानव को ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि एक बच्चे को उसकी ताकत तथा कमजोरियों की पहचान करने में भी सहायता करते हैं। इससे उसे एक बेहतर इंसान बनने में सहायता प्राप्त होती है। देश में शिक्षकों का दर्जा ईश्वर से भी ऊपर दिया गया है। भारत ने विश्व को कई बड़े दार्शनिक दिये जो विश्व गुरु के तौर भी आज भी प्रसिद्ध हैं। जहां तक शिक्षा के क्षेत्र का संबंध है, भारत का एक गहरा इतिहास रहा है। वहीं 5 सितंबर को भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन की जयंती के दिन पुरे भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। हमारे देश के बेहद से शिक्षाविदों, शिक्षकों तथा व्याख्याताओं के योगदान, प्रतिभा और कौशल को विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया है। ऐसे ही कुछ महान अध्यापको से हम आपका परिचय करवाते हैं।।।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन:- भारत के पूर्व राष्ट्रपति तथा दार्शनिक तथा शिक्षाविद डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 1888 को तमिलनाडु के एक छोटे से गांव तिरुतनी में हुआ था। राधाकृष्णन ने कलकत्ता, मैसूर, हार्वर्ड विश्वविद्यालय, हैरिस मैनचेस्टर कॉलेज तथा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय समेत विश्व भर के असंख्य विश्वविद्यालयों में पढ़ाया है। 17 अप्रैल 1975 को उनका निधन हुआ था।

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम:- भारत के 'मिसाइल मैन' के नाम से जाने जाने वाले पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने हमेशा चाहा कि उनको एक अच्छे अध्यापक के रूप में याद किया जाए। पढ़ाने का उनको जुनून था। उनका निधन 27 जुलाई 2015 को IIM शिलॉन्ग में पढ़ाते वक़्त ही हुआ था। डॉ। एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को धनुषकोडी, रामेश्वरम, तमिलनाडु, भारत में हुआ था। उनकी जयंती को दुनिया छात्र दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

आचार्य चाणक्य:- आचार्य चाणक्य महान शाषक चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री तथा गुरु थे। वे 'कौटिल्य' के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। वे तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य थे, उन्होंने मुख्यत: भील तथा किरात राजकुमारों को प्रशिक्षण दिया। उन्होंने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। 

स्वामी दयानंद सरस्वती:- महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती आधुनिक भारत के प्रख्यात चिंतक, समाज-सुधारक, अखंड ब्रह्मचारी तथा आर्य समाज के संस्थापक थे। उन्होंने वेदों के प्रचार तथा आर्यावर्त को आजादी दिलाने के लिए मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। वे एक संन्यासी तथा एक चिंतक थे। उन्होंने कर्म सिद्धांत, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाये।

रवींद्रनाथ टैगोर:- रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक तथा भारतीय साहित्य के नोबल अवार्ड विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूंकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के पहले नोबेल अवार्ड से सम्मानित किए जाने वाले शख्स हैं। वे एकमात्र कवि हैं, जिसकी दो रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' तथा बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांग्ला' गुरुदेव की ही रचनाएं हैं।

सावित्रीबाई फुले:- सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 में हुआ था। वे देश की पहली महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवियित्री थीं। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। 

स्वामी विवेकानंद:- स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 में हुआ था। वे वेद वेदांत के प्रसिद्ध तथा प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका असली नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की तरफ से हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदांत दर्शन अमेरिका तथा यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानंद की वजह से ही पहुंचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है।

मुंशी प्रेमचंद:- धनपत राय श्रीवास्तव का जन्म 31 जुलाई 1880 में हुआ था, आगे चलकर ये प्रेमचंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। वे हिंदी एवं उर्दू के अत्यधिक प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि तकरीबन डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से ज्यादा कहानियां लिखीं।

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