ताराचंद बड़जात्या : पिता चाहते थे कानून की पढ़ाई कराना, लेकिन फिल्मों में कमाया नाम
ताराचंद बड़जात्या : पिता चाहते थे कानून की पढ़ाई कराना, लेकिन फिल्मों में कमाया नाम
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पारिवारिक फिल्मों का प​र्याय बन चुके बड़जात्या प्रोडक्शन के संस्थापक ताराचंद बड़जात्या का  जन्म 10 मई 1914 में हुआ था. राजश्री स्टूडियो से जीवन मृत्यु, चितचोर, गीत गाता चल, दोस्ती, नदिया के पार, हम आपके हैं कौन और विवाह जैसी बेहतरीन फैमिली ड्रामा फिल्मों का प्रोडक्शन हुआ है. ताराचंद ने राखी, सचिन और जरीना वहाब जैसे कई कलाकारों को बॉलीवुड में अपनी फिल्मों से लॉन्च किया था. उन्होंने रवि जैन और राम-लक्ष्मण जैसे म्यूजिक कंपोजर्स को भी मौका दिया. ताराचंद का स्टूडियो आज भी बेहतरीन संगीत से सजी फैमिली ड्रामा फिल्मों के लिए जाना जाता है. आज उनके पुण्यतिथि के दिन हम आपको उनके जीवन से जुड़े रहस्य बताने जा रहे है.

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अपनी शानदार काम करने के लिए समय-समय पर राजश्री की कई फिल्मों को अवॉर्ड मिले हैं. ताराचंद साल 1914 में राजस्थान के कुचामन में एक मारवाड़ी परिवार में जन्मे थे. एक रिपोर्ट के मुताबिक ताराचंद के पिता चाहते थे कि वह अपनी बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद क़ानून की पढ़ाई करें, लेकिन ताराचंद को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी. जब उनके पिता को इस बारे में पता चला तो उन्होंने मोती महल थिएटर्स में ताराचंद को ट्रेनिंग पर भेज दिया.ताराचंद ने मोती महल में ट्रेनिंग लेनी शुरू की और तकरीबन 5 साल तक यहां काम करने के बाद उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से सभी का दिल जीत लिया. मोती महल के पास दक्षिण भारत में फिल्म डिस्ट्रिब्यूशन का बिजनेस राइट था जिसका नाम चमारिया टॉकी डिस्ट्रिब्यूटर्स था. यह बिजनेस बहुत अच्छा नहीं चल रहा था तो मोती महल ने ताराचंद को मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में मौजूद उनके इस कारोबार की देखरेख के लिए भेज दिया गया.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इस बारे में एक दिलचस्प कहानी यह है कि बिजनेस टायकून एस.एस. वासन ने चंद्रलेखा नाम की प्रोडक्शन कंपनी शुरू की थी जो दक्षिण भारत में बुरी तरह फ्लॉप साबित हुई. इसके बाद वासन काफी निराश हो गए और इसी बीच ताराचंद ने सलाह दी कि उन्हें अपने इस प्रोडक्शन हाउस को हिंदी में डब कर देना चाहिए. क्योंकि वासन को हिंदी भाषा की जानकारी नहीं थी इसलिए इस बारे में वह कॉन्फिडेंट नहीं थे.ताराचंद ने यह जिम्मेदारी ले ली और देखते ही देखते काम चल पड़ा. वासन ने ताराचंद को पूरे भारत में फिल्में डिस्ट्रिब्यूट करने की जिम्मेदारी दे दी. इसके लिए रातों-रात देश भर में राजश्री प्रोडक्शन्स के दफ्तर खोलने की जरूरत थी, लेकिन ताराचंद ने यह रिस्क लिया और इस तरह 1948 में राजश्री प्रोडक्शन्स की नींव पड़ी. ताराचंद के बाद उनके परिवार की पीढ़ियां आज भी फिल्म निर्माण के काम में जुटी हुई हैं. इस प्रोडक्शन की फिल्मों का विषय बहुत साफ़ है. इन लोगों का मकसद साफ़-सुथरी फिल्मों से दर्शकों का मनोरंजन करना है. इसके बाद एक के बाद एक सफल फिल्मों का सिलसिला शुरू हुआ. आरती (1962) से शुरू हुआ सफर दोस्ती, जीवन-मृत्यु, उपहार, पिया का घर, सौदागर, गीत गाता चल, तपस्या, चितचोर, दुल्हन वही जो पिया मन भाए, अँखियों के झरोखे से, तराना, सावन को आने दो, नदिया के पार, सारांश से होता हुआ मैंने प्यार किया तक चलता रहा. 1992 में उनका देहांत हो गया.

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