इस तलाक की कौन पूछे!
इस तलाक की कौन पूछे!
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इन दिनों तलाक शब्द काफी सुनने में आ रहा है। आपने समाचार पत्रों, टेलिविज़न आदि पर इस शब्द को पढ़ा, सुना होगा। हालांकि ट्रिपल तलाक शब्द अधिक सुनने में आ रहा है। अजी सुनने में और पढ़ने में क्या समाज में अब  तेजी से तलाक के मामले बढ़ने लगे हैं पति पत्नी में या परिवार में अनबन हुई और तलाक होने लगा है। तलाक के ये मामले अधिक बढ़ गए हैं। ट्रिपल तलाक को लेकर अधिक बातें हो रही हैं मगर हम बात कर रहे हैं  समाज में विभिन्न वर्गों और प्रमुखतः हिंदूओं के बीच दिए जाने वाले तलाक के मामलों में। जी हां, जितनी तेजी से समाज में विवाह समारोह का आयोजन किया जाता है। एक दो दिन में ही जितने दूल्हे घोड़ी चढ़ते हैं उससे भी कहीं गुना अधिक तेजी से समाज में परिवार बिखर रहे हैं रिश्ते टूट रहे हैं।

आखिर यह सब क्यों हो रहा है। इसका समाज पर क्या असर होता है। तलाक के बाद जीवन कितना उलझ जाता है। क्या इस बात पर गंभीर चिंतन हो रहा है। यूं तो हिंदू मान्यताओं में जब पत्नी और पति एक दूसरे का वरण कर लेते हैं तो फिर वे आजीवन साथ रहते हैं। मगर बदलती परिस्थितियों में तलाक से लोगों को इस तरह के रिश्तों से छुटकारा मिल जाता है।

विधिसम्मत व्यवस्था किसी परेशानी से निजात पाने के लिए बनाई गई थी लेकिन समय बदलने के ही साथ इस व्यवस्था का कथित तौर पर गलत उपयोग भी होने लगा। अब तो छोटे - छोटे कारणों से और कई बार झूठ के समावेश के चलते तलाक ले लिया जाता है। तलाक की व्यवस्था विधि द्वारा महिलाओं को संरक्षण देने के लिए की गई थी लेकिन अब इस हथियार को गलत तरह से प्रस्तुत किया जा रहा है। अब कई ऐसे मामले सामने आने लगे हैं जिसमें वधू पक्ष गलत कारणों के चलते तलाक ले लेता है और आरोप मढ़ देता है वर पक्ष पर। कई बार तो लोगों को झूठे आरोप में भी फंसा दिया जाता है।

हालांकि आज भी कई ऐसे मामले हैं जिनमें लड़की विषम परिस्थितयों के चलते तलाक लेती है। मगर इस तरह से समाज व्यवस्था छिन्न भिन्न हो रही है। हालात ये हैं कि तलाक के कारण कई तरह की परेशानियां उपजने लगी हैं। हमें जीवन में हर पल योग करना होता है। यदि हम योग के माध्यम से उचित समायोजन कर लेते हैं तो जीवन बेहतर हो जाता है।

यूं भी बिना सामंजस्य के जीवन में कुछ भी नहीं होता है। फिर विवाह तो टिका ही सामंजस्य और योग की धुरी पर है। मौजूदा समय में पति पत्नि और परिवार के अन्य सदस्य अहम को महत्व देते हैं। जब अहम में टकराहट होती है तो यह परिवार को बिखेर देता है। यदि हम अहम को छोड़ दें तो बिखराव और अलगाव नहीं होता बल्कि लगाव और अपनापन होता है।

तलाक हो जाने पर यदि स्त्री और पुरूष की संतान होती है तो फिर इसका असर संतानों पर भी होता है। उन्हें न तो माता पिता का प्रेम मिल पाता है और न ही वे दादा दादी और नाना नानी के पास सुकून के पल बिता पाते हैं। पति पत्नी की अनबन से उनके मानस पटल भी नकारात्मक असर होता है और बचपन में जो मन फूलों जैसा कोमल होता है वह मुरझा जाता है।

समाज में भी परिवार की अनबन और पति पत्नी का तलाक हो जाने के कारण परिवार को बहुत कुछ सहन करना पड़ता है। इससे सामाजिक व्यवस्थाऐं तक छिन्न भिन्न हो सकती हैं। हालांकि कई परिवार परामर्श केंद्र और इससे जुड़े लोग आपसी संबंधों को मधुर बनाने में लगे होते हैं मगर तलाक का असर हर मोर्चे पर नकारात्मक तरह से होता है। टूटते और बिखरते परिवार मौजूदा समय की एक बड़ी परेशानी है लेकिन इस तलाक की कौन पूछे।

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