देश में कोरोना वायरस के अचानक कई मामले सामने आने से एक समूह का नाम सबसे ज्यादा सामने आ रहा वो है तब्लीगी जमात. निजामुद्दीन के तब्लीगी मरकज में आयोजित धार्मिक जलसे में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए. जिसके बाद कई लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए और अब तक कई लोगों की मौत हो चुकी है. इसके बाद से ही तब्लीगी जमात प्रशासन के निशाने पर है और इसमें शामिल होने वाले लोगों की तलाश जारी है. तब्लीगी जमात ऐसे लोगों का समूह है, जो मुस्लिम धर्म का प्रचार-प्रसार के लिए स्वयं को समर्पित करते हैं. यह पहली बार नहीं है जब यह चर्चा में है. इससे पहले भी कई बार तब्लीगी जमात विवादों में रही है. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि इसका मकसद क्या है? किसने इसकी स्थापना की और किन विवादों के चलते यह पहले भी विरोध झेल चुकी है.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि तब्लीगी जमात की स्थापना 1927 में हुई. उस दौर में यह सुधारवादी धार्मिक आंदोलन के रूप में अस्तित्व में आई और इसकी स्थापना करने वाले मुहम्मद इलियास कांधलवी थे. यह सुन्नी मुसलमानों का संगठन है. 1941 में जमात के पहले जलसे में करीब 25 हजार लोग शामिल हुए थे. उस वक्त भारत का बंटवारा नहीं हुआ था. पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी बड़ी संख्या में लोग जमात से जुड़े हैं. तब्लीगी जमात दुनिया के 20 करोड़ मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है.
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अगर आपको नही पता तो बता दे कि उत्तर प्रदेश के मुजफफरनगर जिले के कांधला गांव में मुहम्मद इलियास कांधलवी का जन्म हुआ था. कांधला गांव का होने के कारण नाम में कांधलवी लगाया जाता है. शुरुआत में स्थानीय मदरसे में पढ़ाई की और उसके बाद दिल्ली के निजामुद्दीन आ गए. जहां पर उन्होंने रुरान को कंठस्थ किया और अरबी-फारसी की किताबों को पढ़ा. इस्लाम का अध्ययन कर नामचीन इस्लामिक हस्ती रशीद अहमद गंगोही के साथ ही रहने लगे. कांधलवी देवबंदी विचारधारा से प्रभावित थे. 1908 में उन्होंने दारुल उलूम में दाखिला लिया. काफी सालों बाद उन्होंने दिल्ली की बंगलावाली मस्जिद में जमात की स्थापना की.
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