अल्ला रक्खा ख़ाँ सुविख्यात तबला वादक, भारत के सर्वश्रेष्ठ एकल और संगीत वादकों में से एक थे. इनका पूरा नाम क़ुरैशी अल्ला रक्खा ख़ाँ है. अल्ला रक्खा ख़ाँ अपने को पंजाब घराने का मानते थे. अल्ला रक्खा ख़ाँ के पुत्र का नाम ज़ाकिर हुसैन है जो स्वयं प्रसिद्ध तबला वादक हैं.
उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ का जन्म 29 अप्रैल, 1919 को भारत के जम्मू शहर के फगवाल नामक जगह पर हुआ था. आरंभ से ही अल्ला रक्खा को तबले की ध्वनि आकर्षित करती थी. बारह वर्ष की अल्प आयु में एक बार अपने चाचा के घर गुरदासपुर गये. वहीं से तबला सीखने के लिए घर छोड़ कर भाग गये.
संगीत की शिक्षा -
अल्ला रक्खा ख़ाँ 12 वर्ष की उम्र से ही तबले के सुर और ताल में माहिर थे. अल्ला रक्खा ख़ाँ घर छोड़ कर उस समय के एक बहुत प्रसिद्ध कलाकार उस्ताद क़ादिर बक्श के पास चले गये. जैसे जौहरी हीरे की परख कर लेता है, वैसे ही उस्ताद क़ादिर बक्श ने भी रक्खा ख़ाँ के अंदर छुपे कलाकार को पहचान गये और उनको अपना शिष्य बना लिया.
इस प्रकार आपकी तबले की तालीम विधिवत आरंभ हुई. मियां क़ादिर बक्श के कहने पर उनको पटियाला घराने के मशहूर खयाल-गायक आशिक अली ख़ाँ ने रागदारी और आवाज़ लगाने के गुर सिखाये. ऐसा माना जाता था कि बिना गायकी सीखे संगीत की कोई भी शाखा पूर्ण नहीं होती.
पारिवारिक जीवन -
अल्ला रक्खा ने दो शादियां की थी. बावी बेगम से पहली शादी में उनके तीन बेटे जाकिर हुसैन, फजल कुरैशी और तौफीक कुरैशी हैं और एक बेटी खुर्शीद औलिया नी कुरैशी थी. अल्ला रक्खा ने पाकिस्तान की एक महिला से प्रेम विवाह भी किया था. अल्ला रक्खा के बड़े बेटे उस्ताद जाकिर हुसैन भी मशहूर तबला वादक हैं.
अल्ला रक्खा ने लाहौर में संगत वादक तौर पर अपना करियर शुरू किया. 1940 में वह बॉम्बे में आल इंडिया रेडियो में उन्होंने सबसे पहले एकल तबला वादन किया. उन्होंने कई हिंदी फिल्मों में के संगीत में तबला वादन किया.
वह पंडित रविशंकर के तबले की साथ बेहतरीन संगत करते थे. उन्हें 1977 में "पद्मश्री" पुरस्कार और 1982 में "संगीत नाटक अकादमी" पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.