भारतीय साहित्य में आज भी अमर हैं ये कवि
भारतीय साहित्य में आज भी अमर हैं ये कवि
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भारत में आदि काल से ही कवियों और लेखकों का बोलबाला रहा है, इसी क्रम में हिंदी साहित्य में एक नाम सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का भी है जिन्होने हिंदी साहित्य को एक अलग ही मुकाम पर भेजा है सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी का जन्म 21 फरवरी 1899 में पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर में हुआ था। वे हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनका नाम जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभों में लिया जाता है। त्रिपाठी जी की मृत्यु 15 अक्टूबर 1961 को इलाहबाद में हुई थी। उन्होंने हिंदी में कई कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं, लेकिन उनकी छवि विशेष रुप से कविता के कारण ही है। 

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मुख्य रूप से सूर्यकांत त्रिपाठी जी को निराला से भी संबोधित किया जाता है उन्होने अपनी शिक्षा हाई स्कूल तक प्राप्त की और बाद में हिन्दी संस्कृत का स्वतंत्र अध्ययन किया, उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया जब वे तीन वर्ष की अवस्था में थे तब माता का और बीस वर्ष की उम्र मेें उनके पिता का देहांत हो गया था। इसके बाद का उनका सारा जीवन आर्थिक-संघर्ष में बीता। निराला के जीवन की सबसे विशेष बात यह है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने सिद्धांत त्यागकर समझौते का रास्ता नहीं अपनाया। 

 

सूर्यकांत त्रिपाठी जी ने अपने जीवन में संघर्ष का साहस नहीं गंवाया। इन्होने 1922 से 1923 के दौरान कोलकाता से प्रकाशित समन्वय का संपादन किया, 1923 में मतवाला के संपादक मंडल में कार्य किया, उनकी पहली कविता जन्मभूमि प्रभा नामक मासिक पत्र में जून 1920 में, पहला कविता संग्रह 1923  में अनामिका नाम से और पहला निबंध बंग भाषा का उच्चारण अक्टूबर 1920 में मासिक पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित हुआ था। 

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