जब पत्नी से मिलने के लिए घोडा बने थे सूर्य देव
जब पत्नी से मिलने के लिए घोडा बने थे सूर्य देव
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सूर्य देव का दिन रविवार का दिन माना जाता है। इस दिन सूर्य देव का पूजन करने से बड़े लाभ होते हैं और इसी के साथ सूर्य देव अपने भक्तों पर प्रसन्न होते हैं और मनचाहा वरदान देते हैं। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं सूर्य देव की वह कथा जो आप सभी ने कभी नहीं पढ़ी होगी। यह कथा उस समय की है जब सूर्य देव अपनी पत्नी को मिलने के लिए घोड़ा बन गए थे। आइए बताते हैं।

पौराणिक कथा - श्री शनि भगवान के पिता जी सूर्य देव तथा माता संज्ञा हैं। ब्रह्मदेव के पुत्र दक्ष की कन्या, संज्ञा अत्यंत रूपवती थी। दक्ष ने अपनी कन्या संज्ञा की शादी सूर्यदेव के साथ कर दी। संज्ञा ने सूर्यदेव से दो पुत्र 1. दक्षिणाधिपति यम और 2. श्री शनिश्चर तथा 1. ताप्ती, 2. भद्रा, 3. कालिंदी, 4. सावित्री इन चार कन्याओं को जन्म दिया।

एक दिन संज्ञा सूर्यदेव का तेज सहन न कर सकीं इसलिए उन्होंने एक अपनी प्रतिरूप स्त्री का निर्माण किया और उसका नाम संवर्णा रख दिया। संज्ञा ने संवर्णा से कहा कि तू सूर्य के साथ पत्नी कर्तव्य का व्यवहार करके पूरी तरह सुख का उपभोग कर लेकिन एक बात ध्यान में रख कि यह सब किसी को भी मालूम न हो। यहां तक कि सूर्यदेव को भी नहीं। संकटकाल में मेरा स्मरण करने पर मैं तेरी मदद करूंगी, ऐसा कह कर संज्ञा अपने मायके लौट गई।दक्ष ने संज्ञा को समझाया कि विवाहिता को अपने पति के साथ ही रहना चाहिए। भले-बुरे दिनों में भी अपने पति का साथ नहीं छोडऩा चाहिए। यदि ब्याही पुत्री को उसके माता-पिता अपने पास रखें तो माता-पिता को दोष लगता है इसलिए यहां न रहकर अपने पति के घर रहना ही उचित है। पिता दक्ष का यह विचार सुनकर संज्ञा को दुख हुआ, वह क्रोधित हुई और स्त्री जन्म को दोष देने लगी, तुरन्त ही संज्ञा ने अपने आपको घोड़ी के रूप में बदल लिया और निराहार तपस्या के लिए हिमालय पर्वत पर चली गई। संज्ञा के मायके चले जाने पर संवर्णा सूर्यदेव की घर गृहस्थी ठीक से चला रही थी। 

यथावकाश संवर्णा ने सूर्यदेव से 5 पुत्र और 2 कन्याओं को जन्म दिया। पुत्रियां 1. भद्रा, 2. वैधती और पुत्र 1. श्राद्धदेव, 2. मनु, 3. व्यतिपात, 4. कुलिका, 5. अर्थधाम। इस प्रकार संतति प्राप्ति तक सूर्यदेव को थोड़ा सा भी संदेह नहीं हुआ लेकिन एक दिन शनि भगवान को बहुत भूख लगी तो उसने अपनी माता संवर्णा से खाने के लिए मांगा। संवर्णा ने श्री शनि भगवान से कहा कि भगवान की पूजा होने दो, उन्हें नेवैद्य चढ़ाने के बाद तुम्हें खाने को दूंगी लेकिन शनि महाराज ने मुझे अभी खाना चाहिए ऐसा कह कर संवर्णा को लात दिखाई। उस वक्त संवर्णा ने शनि भगवान को शापित किया कि तेरा पैर टूट जाएगा।

यह सुनकर डर के मारे शनि भगवान ने पूरी घटना अपने पिता सूर्यदेव से बता दी। सूर्यदेव ने विचार किया कि माता अपने पुत्र को कभी भी शाप नहीं देती। यह अधर्म की बात असंभव है। सूर्यदेव ने ध्यान दृष्टि से देखा तो समझ गए कि यह संज्ञा नहीं है। सूर्यदेव ने क्रोधित होकर संवर्णा से पूछा तू कौन है? सूर्यदेव को क्रोधित मुद्रा में देखकर संवर्णा डर के मारे पानी-पानी हो गई और उसने कहा, मैं संज्ञा की छाया संवर्णा हूं। संज्ञा तपस्या के लिए हिमालय पर्वत पर चली गई और मैं ही घर गृहस्थी का कर्तव्य निभा रही हूं।

तब सूर्यदेव ने शनि भगवान से कहा कि बेटा शनि संवर्णा तेरी माता के समान ही है, उसकी शापित बात व्यर्थ नहीं हो सकती है लेकिन अति बाधक भी नहीं होगी तो अब तेरा पैर का टुकड़ा न होकर वह टेढ़ी बन जाएगी (उसी वक्त से शनि भगवान का एक पैर टेढ़ा है)। बाद में सूर्यदेव ने अंतर्दृष्टि से देखा तो संज्ञा हिमालय पर्वत पर घोड़ी के रूप में निराहार तपस्या कर रही है और रात-दिन सूर्यदेव का नाम जप रही है। सूर्यदेव अश्व रूप धारण कर संज्ञा से मिलने हिमालय पर्वत पर चले गए। तपस्या में ध्यानमग्र संज्ञा ने अश्व रूप में सूर्यदेव को देखा और कहा, ‘‘सूर्य के अलावा मुझे अन्य पुरुष दिखाई नहीं देता इसलिए यह अश्व सूर्यदेव ही है।’’

अश्व रूपी सूर्य को देख कर संज्ञा अत्यंत आनंदित हो उठी। उस वक्त संज्ञा ऋतुमति थी, सूर्यदेव का वीर्यपतन हुआ। वह वीर्य घोड़ी रूप संज्ञा ने नासिका विवा द्वारा ग्रहण किया। कालांतर में वह गर्भवती रही और उसने नासिका विवा द्वारा ही अश्वि देव और वैद्यस्वत नामक दो पुत्रों को जन्म दिया और अश्व रूप संज्ञा तथा सूर्य दोनों धरती पर अवतरित हुए।

हमें प्रकाश देने वाला सूर्य और उसके चारों ओर घूमने वाले नौ ग्रहों को मिलाकर सूर्यमाला स्थित है। उन नौ ग्रहों में से ही शनि एक हैं। सूर्यमाला में कुछ अंर्तग्रह और बहिग्रह हैं। शनि बहिग्रह हैं शनि के दस उपग्रह हैं।

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