सर्वोच्च अदालत नही करेगी समान नागरिक संहिता के मामले में सुनवाई
सर्वोच्च अदालत नही करेगी समान नागरिक संहिता के मामले में सुनवाई
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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता से संबंधित याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया है। कोर्ट का कहना है कि यह संसद के अधिकार क्षेत्र का है। देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए एक जनहित याचिका दी गई थी। जिसमें केद्र सरकार को इस विषय में निर्देश देने को कहा गया था। इस मामले में भारत के नव नियुक्त चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया तीरथ सिंह ठाकुर की बेंच का कहना है कि कोर्ट कैसे संसद को कोड लागू करने को कह सकता है। कानून बनाना सरकार का काम है। उनका कहना है कि यदि किसी को इस नियम से कोई परेशानी है तो वो खुद सामने आए और अपनी समस्या रखे। पहले कोर्ट में भेदबाव की शिकायत लेकर आए फिर हम इस पर सुनवाई करेंगे। समान नागरिक संहिता को लेकर कानून की स्थिति पहले ही स्पष्ट है।

इस संबंध में याचिका भाजपा नेता व सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल की थी। उन्होने इसमें कहा था कि संविधान कहता है ति देश में सब धर्म बराबर है। लेकिन शादी, तलाक और उतराधिकार को लेकर सभी धर्मों में अलग-अलग व्यवस्था है। याचिका में कहा गया है कि देश की आर्थिक प्रगति हुई है लेकिन सामाजिक रुप से हम अब भी पिछड़े हुए है। फिलहाल हम चुनिंदा धर्मनिरपेक्षता अपनाए हुए हैं, किसी मामले में हम धर्म निरपेक्ष हैं तो किसी में नहीं। समान नागरिक संहिता लागू होने से भारत के सभी नागरिकों के लिए चाहें वे हिन्दू हों, मुसलमान हों, सिख हों या ईसाई, सामान सिविल कानून होगा। ऐसे में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए सरकार को निर्देश दिए जाए।

हालांकि, सुप्रीमकोर्ट पहले ही एक अन्य मामले में केंद्र सरकार से समान नागरिक संहिता पर जवाब मांग चुका है। वह मामला ईसाई कानून में तलाक के लिए अलग रहने की अवधि में अन्य धर्मो के कानून में अंतर का है। सरकार ने अभी तक उस मामले में जवाब दाखिल नहीं किया है। बता दें कि केवल हिंदू धर्म में ही तलाक के बाद पत्नी को भरण-पोषण के लिए एस निश्चित राशि देने का प्रावधान है।

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