Oct 29 2015 04:50 AM
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के द्वारा उन प्रावधानों को ख़त्म कराया जाना है, जो मनमर्जी के तरीको से दिए जाने वाले तलाक और पहली शादी के बने रहने के साथ दूसरी शादी से मुस्लिम महिलाओं के साथ पक्षपात रखते हो. हालांकि आशंका यह भी है की इस विवादास्पद फैसले के कारण मुस्लिम समुदाय का एक पक्ष निराश हो सकता है, जो इन सुधारों के विरोध में खड़ा है.
जस्टिस एआर दवे और जस्टिस एके गोयल की बेंच ने मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू से आग्रह किया की वे एक बेंच का गठन करके मुस्लिम पर्सनल लॉ में लैंगिक समानता के मामले का समाधान संविधान की कसोटी पर करें, जो लिंग के आधार पर विभेद को प्रतिबंधित करता है.
बता दे की बेंच ने इस बात पर हैरानगी जाहिर की कि जब संविधान में सबको समानता का अधिकार दिया गया है तो मुस्लिम महिलाओं के साथ लैंगिक पक्षपात क्यों किया जा रहा है. बेंच के मुताबिक मनमर्जी के तलाक और पहली शादी के जारी रहने बाद भी पति की दूसरी शादी कर लेने के खिलाफ कोई सुरक्षा विकल्प नही होने से इन महिलाओं को सुरक्षा नहीं मिल पाती.
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