हल्द्वानी: क्या अतिक्रमणकारियों के कब्जे से मुक्त होगी रेलवे की जमीन ? आज 'सुप्रीम' सुनवाई
हल्द्वानी: क्या अतिक्रमणकारियों के कब्जे से मुक्त होगी रेलवे की जमीन ? आज 'सुप्रीम' सुनवाई
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नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय आज यानी गुरुवार (5 जनवरी) को हल्द्वानी में रेलवे की 78 एकड़ भूमि से 4,365 परिवारों को बेदखल करने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा। वरिष्ठ वकील और कांग्रेस समर्थक माने जाने वाले प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करेंगे। रिपोर्ट्स के अनुसार, क्षेत्र में करीब 50,000 निवासियों का घर है, जिनमें से 90 फीसद मुस्लिम समुदाय के हैं।

स्थानीय निवासियों के मुताबिक, 78 एकड़ क्षेत्र में 5 वार्ड हैं और करीब 25,000 वोटर हैं। बुजुर्ग, गर्भवती महिलाओं और बच्चों की संख्या 15,000 के लगभग है। 20 दिसंबर के हाई कोर्ट के आदेश के बाद, समाचार पत्रों में नोटिस जारी किए गए थे, जिनमें अतिक्रमणकारियों को 9 जनवरी तक अपना घरेलू सामान हटाने के लिए कहा गया था। प्रशासन ने 10 ADM और 30 SDM रैंक के अधिकारियों को प्रक्रिया की निगरानी करने का निर्देश दिया है।  

क्या है हल्द्वानी अतिक्रमण का मामला:-

ये मामला हल्द्वानी के बनभूलपुरा के 2.2 किमी इलाके में फैले गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती और इंदिरा नगर का है। जहां के निवासियों को रेलवे नोटिस जारी कर चुका है कि 82.900 किमी से 80.170 रेलवे किमी के बीच अवैध अतिक्रमणकारी हट जाएं। वरना अतिक्रमण हटाया जाएगा और इसका खर्च भी उन्ही अतिक्रमणकारियों से ही वसूला जाएगा। रेलवे के अनुसार, 2013 में सबसे पहले गौला नदी में अवैध रेत खनन को लेकर मामला अदालत में पहुंचा था। 

रेलवे के अनुसार, 10 वर्ष पूर्व उस मामले में पाया गया कि रेलवे के किनारे रहने वाले लोग ही अवैध रेत खनन में शामिल हैं। इसके बाद उच्च न्यायालय ने रेलवे को पार्टी बनाकर इलाका खाली कराने के निर्देश दिए। तब स्थानीय निवासियों ने विरोध में सर्वोच्च न्यायालय जाकर याचिका दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट ने HC को स्थानीय निवासियों की भी दलीलें सुनने का निर्देश दिया। रेलवे का दावा है कि सभी पक्षों की फिर दलीलें सुनने के बाद उच्च न्यायालय 20 दिसंबर 2022 को अतिक्रमणकारियों को हटाने का आदेश दिया था। अब स्थानीय निवासी हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं, जिसपर आज सुनवाई होने वाली है। अब देखना ये है कि, क्या सुप्रीम कोर्ट अतिक्रमणकारियों के पक्ष में फैसला सुनाती है या हाई कोर्ट के आदेश को यथावत रखती है। 

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