नई दिल्ली: सवर्ण समुदाय के गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने के क़ानून के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर शीर्ष अदालत में बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी. बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय तय कर सकता है कि इस मामले को संविधान बेंच के पास भेजा जाए या नहीं. मंगलवार को याचिकाकर्ता की तरफ से राजीव धवन ने दलील देते हुए कहा कि केंद्र सरकार का ये फैसला संविधान के बुनियादी ढांचे और इंदिरा साहनी प्रकरण में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत रखने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन है.
याचिकाकर्ता तहसीन पूनावाला की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने मांग की है कि शीर्ष अदालत इस पर रोक लगाए क्योंकि रेलवे पहले ही इस कोटे के हिसाब से भर्ती निकाल चुका है, यदि एक बार उसके अनुसार भर्ती हो गई तो बाद में उसे पलटना संभव नहीं हो सकेगा . दरअसल, याचिका में शीर्ष अदालत में 124वें संविधान संसोधन को चुनौती दी गई है. यह याचिका यूथ फॉर इक्वॉलिटी और वकील कौशलकांत मिश्रा और अन्य की तरफ से दायर की गई थी. इनके अनुसार आरक्षण का आधार आर्थिक नहीं हो सकता.
याचिका के अनुसार विधयेक संविधान के आरक्षण देने के मूल सिद्धांत के विरुद्ध है, यह सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण देने के साथ ही 50% के सीमा को भी ध्वस्त करता है. आपको बता दें कि यह विधेयक सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में सवर्णों समुदाय के पिछड़े लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देता है.
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