नई दिल्ली: देश की सबसे बड़ी अदालत ने माना है कि मुकदमों का बोझ बढ़ाने में कुछ हद तक वह खुद भी जिम्मेदार है। अदालत ने कहा कि जब हम किसी पक्ष को लिखित आश्वासन देने के लिए इजाजत देते हैं, तो अधिकतर मामलों में इसके बाद अवमानना याचिका दायर की जाती है। इस प्रकार से हमारे सामने सैकड़ों अवमानना याचिकाएं लंबित हैं। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि वास्तव में हम शीर्ष अदालत में मुकदमों को बढ़ा रहे हैं।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेशों के खिलाफ एक पर विशेष अनुमति याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें मकान खाली करने के आदेश के खिलाफ संशोधन याचिका खारिज कर दी गई थी। फिर इस निर्णय पर पुनर्विचार भी दाखिल की गई थी और याचिकाकर्ता-किरायेदार को खाली करने के लिए अतिरिक्त वक़्त देने के विशेष अनुरोध को स्वीकार कर लिया था। लेकिन इस मामलें में फिर से याचिका दाखिल करते हुए खाली करने के लिए समय की मांग की गई थी।
पीठ ने कहा कि, कभी-कभी हम मकान खाली करने के लिए छह माह या एक साल तक खाली करने का वक़्त बढ़ाते हैं। किन्तु ये ऐसे मामले हैं जो निचली अदालतों में 15 वर्ष और यहां तक कि दो दशकों तक लंबित हैं। क्या हमें इस वक़्त का आगे विस्तार क्यों करना चाहिए। पीठ ने कहा कि जहां एक पक्ष कोर्ट के आदेश के अनुपालन में एक विशिष्ट अवधि में परिसर खाली करने की लिखित आश्वासन देता है।
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