सुप्रीम कोर्ट ने गोवा सरकार को विकास पर दी यह नसीहत
सुप्रीम कोर्ट ने गोवा सरकार को विकास पर दी यह नसीहत
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नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने विकास को लेकर एक बड़ी टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह सतत विकास के खिलाफ नहीं है। मगर यह पर्यावरण की कीमत पर नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट यह टिप्पणी गोवा सरकार के संबंध नें कर रहा था। अदालत ने कहा कि प्रशासन सिर्फ इसलिए गोवा को बर्बाद नहीं कर सकता क्योंकि उसके पास राष्ट्रीय औसत से अधिक वन क्षेत्र है। इस मामले पर अगली सुनवाई 23 सितंबर को होगी। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने शुक्रवार को सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वह उन नेताओं के खिलाफ हैं जो अदालती आदेशों को अपने विवेकहीन मकसद के लिए इस्तेमाल करते हैं।

खंडपीठ ने कहा कि सतत विकास के लिए हम आपके साथ हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप जंगल उजाड़ देंगे। हम आपको एक भी पेड़ काटने की इजाजत नहीं देंगे। मेहता ने कोर्ट को बताया कि गोवा में करीब 62 फीसद जंगल है। यह राष्ट्रीय औसत से करीब 62 फीसद अधिक है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि तो क्या इससे आपको इसे नष्ट करने का अधिकार मिल गया।

आप भाग्यशाली हैं कि इतना बड़ा वन क्षेत्र है। हमारा निवेदन यही है कि इसे नष्ट न करें। खंडपीठ उस याचिका की सुनवाई कर रही थी जिसमें गोवा पर 4 फरवरी, 2015 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बदलने की अपील की गई है। शीर्ष अदालत के इसी फैसले पर मेहता ने कहा कि इस आदेश के आधार पर गोवा में प्रशासन किसी भी क्षेत्र में विकास कार्य नहीं कर पाएगा। इस पर अदालत ने काह कि वह विकास कार्य के खिलाफ नहीं है।

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