सुप्रीम कोर्ट से डॉक्टरों को झटका, राज्य सरकार की इस नीति को माना सही
सुप्रीम कोर्ट से डॉक्टरों को झटका, राज्य सरकार की इस नीति को माना सही
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नई दिल्लीः इन दिनों अक्सर देश में डॉक्टर और सरकार के बीतच विभिन्न मुद्दों पर टकराव की खबरें आती रहती हैं। इसी में कई मामले कोर्ट के दरवाजे तक पहुुंच जाते हैं। डॉक्टर परा स्नातक और सुपर स्पेशलिटी कोर्स में दाखिले के समय जो बांड भरते हैं उनका वह विरोध करते रहे हैं। इसी सिलसिले में उन्होंने शीर्ष कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने इस बाध्यकारी बांड को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया। एसोसिएशन ऑफ मेडिकल सुपर स्पेशलिटी एसपाइरेंट एंड रेजिडेंट्स ने संबंध में याचिका दायर की थी।

जिसे अदालत ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने बताया कि बांड सही है और उन्हें उनका पालन करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि राज्य सरकार अपने अधिकारों का उपयोग कर डॉक्टरों को अनिवार्य सेवा देने के लिए कह सकते हैं। अदालत ने दो टूक कहा है कि यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। न्यायामूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायामूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने व्यापक जनहित और चिकित्सा सेवा से महरूम समुदाय को लाभ पहुंचाने के मद्देनजर विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा डॉक्टरों को कोर्स पूरा करने केबाद एक से पांच साल तक के लिए जन सेवा करने संबंधी बांड थोपने को सही करार दिया है।

मालूम हो कि इस बांड का पालन न करने वालों पर 10 से 50 लाख रुपये जुर्माने का भी प्रावधान है। पीठ ने हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गोवा, गुजरात, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, राजस्थान सहित अन्य राज्यों द्वारा थोंपे गए ऐसे बांड को सही करार दिया है। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि अल्पावधि के लिए काम करने के एवज में वजीफा पाने वाले डॉक्टर यह शिकायत नहीं कर सकते कि उनसे बंधुआ मजदूर की तरह काम लिया जाता है। अदालत ने बताया कि सरकारी अस्पतालों में सेवा देने को डॉक्टर किसी भी तरीके से बंधुआ मजदूरी नहीं कह सकते। देश के ग्रामीण हलकों में चिकित्सा की बहुत खराब स्थिति है। 

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