नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश से देश के लगभग 12 लाख आदिवासियों और वनवासियों को अपने घर छोड़ना पड़ सकता है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 16 प्रदेशों के करीब 11.8 लाख आदिवासियों के जमीन पर कब्जे के दावों को सिरे से खारिज करते हुए राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि वे अपने कानूनों के अनुसार जमीनें खाली कराएं। सर्वोच्च न्यायालय ने लाखों हेक्टेयर जमीन को कब्जे से मुक्त कराने का आदेश जारी किया है।
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प्रदेशों के ऐफिडेविट्स से यह साफ नहीं है कि हर क्लेम व्यक्तिगत रूप से किया गया है या फिर एक शख्स ने एक से अधिक क्लेम किए हैं। इसके जरिए यह अनुमान लगाना मुश्किल लग रहा है कि शीर्ष अदालत के आदेश से असल में कितने लोग या परिवारों पर असर होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने 13 फरवरी को यह आदेश दिया था। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, नवीन सिन्हा और इंदिरा बनर्जी की पीठ ने 16 प्रदेशों के मुख्य सचिवों को आदेश जारी करते हुए कहा कि वे 12 जुलाई से पहले ऐफिडेविट जमा करते हुए बताएंगे कि निर्धारित समय में जमीन खाली क्यों नहीं कराई गई। जंगलों और अभयारण्यों में अतिक्रमण की समस्या काफी जटिल है। कई मामलों में कब्जाधारक अपने मालिकाना अधिकार को साबित करने में नाकाम रहे हैं।
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वहीं केंद्र सरकार ने राज्यों से सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से प्रभावित होने वाले लोगों की जानकारी मांगी है। एक बार प्रभावित हो रहे लोगों की कुल संख्या पता चलने के बाद केंद्र सरकार उनके लिए किसी विकल्प पर विचार करेगी। जनजाति विकास मंत्रालय के सेक्रटरी दीपक खांडेकर ने जानकारी देते हुए कहा है कि, 'हमें यह पता है कि अब तक जंगल में 19 लाख पट्टों को कायम रखा गया है। इसके अलावा अन्य दावों की क्या स्थिति है, इस संबंध में हम प्रदेश सरकारों से पता करने का प्रयास कर रहे हैं।'
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