नई दिल्ली : उच्चतम न्यायलय ने संविधान की धारा 377 पर मंगलवार को सुनवाई करते हुए कहा कि यह मामला अब 5 जजों की बेंच वाली संवैधानिक पीठ को भेज दिया गया है, जहां इस मामले पर विस्तार से चर्चा होगी। दरअसल समलैंगिकता को धारा 377 के तहत अपराध की श्रेणी से हटाया जाएगा या यह अपराध बना रहेगा, इस बात पर विचार किया जाएगा।
इस मामले को सर्वोच्च न्यायलय में तीन जजों की पीठ ने सुनवाई की थी। नाज फाउंडेशन सहित कई दूसरे संगठनों व कई हस्तियों ने इस संबंध में संसोधन के लिए याचिका दायर की थी। जिस पर मुख्य न्यायधीश टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीयपीठ सुनवाई करेंगी। आम तौर पर ऐसी याचिकाओं की सुनवाई चैंबर में होती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इसकी सुनवाई खुली अदालत में करेगा।
इस संबंध में याचिका 2014 के प्रारंभ में ही दायर की गई थी। याचिका में अदालत से अपील की गई थी वह अपने आदेश में संसोधन करे। इस मामले दिल्ली उच्च न्यायलय ने समलैंगिकता को धारा 377 के तहत संलैंगिकता को अपराध मुक्त कर दिया था। करीब 153 साल पुराने इस कानून के तहत अगर दो व्यक्ति आपसी रजामंदी से भी अप्राकृतिक यौन संबंध बनाते हैं तो वह गैर-कानूनी होगा और उसके लिए उम्रकैद की सजा हो सकती है।
धारा 377 में केवल समलैंगिकता का उल्लेख नही है बल्कि यह बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौन को मद्देनजर रख कर बनाया गया था। समलैंगिकता को वैधता देने के लिए 2001 में दिल्ली उच्च न्यायलय में याचिका दायर की गई थी। कई साल तक चली सुनवाई के बाद उच्च न्यायलय ने इस धारा के तहत वयस्कों के बीचसमलैंगिकता कानून को मान्यता दी थी, लेकिन इस का कई धार्मिक संगठनों ने विरोध किया और इसे शर्ष न्यायलय में चुनौती दी गई।