आम व्यक्ति और बड़े पद पर विराजित व्यक्ति के बोलने में फर्क है - सुप्रीम कोर्ट
आम व्यक्ति और बड़े पद पर विराजित व्यक्ति के बोलने में फर्क है - सुप्रीम कोर्ट
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नई दिल्ली. अभिव्यक्ति की जिम्मेदारी एक बोहत बड़ा मुद्दा है. इस सम्बन्ध में बता दे कि बड़े पद पर विराजित लोगो की बेतुकी बयानबाजी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है. कोर्ट ने इस मामले में समीक्षा कर रहा है कि क्या किसी आपराधिक मामले पर बेवजह टिप्पणी से मंत्रियो और अफसरों को रोका जा सकता है.

बता दे कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मंत्री आज़म खान की बुलंदशहर गैंगरेप के मामले में बयानबाजी के बाद कोर्ट ने इस मसले पर विस्तृत सुनवाई को ज़रूर बताया था. इस समस्या पर वरिष्ठ वकील फली नरीमन को एमिकस क्यूरी बनाया था. उन्होंने इस बारे में कहा कि इस मुद्दे पर बहुत सावधानी से विचार की ज़रूरत है. संविधान हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की आज़ादी देता है. ये आज़ादी मंत्रियों को भी हासिल है. वो आज़म खान हो या कोई और, क्या ये आज़ादी उससे छीनी जा सकती है?

कोर्ट ने इस बात पर जवाब दिया कि आम आदमी के कुछ बोलने और बड़े पद पर विराजित व्यक्ति के बोलने में बहुत फर्क है. यदि कोई मंत्री बलात्कार पीड़ित महिला पर गलत टिप्पणी करता है तो इससे जांच पर असर पड़ने के साथ पीड़िता को मानसिक कष्ट होगा. वो पीड़िता जो अपने संवैधानिक हक को छीने जाने के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है. फली नरीमन ने इस पर जवाब दिया कि कोर्ट की बात पर सहमति है किन्तु हमें इस सम्बन्ध में जांचना होगा की हम क्या कर सकते है. संविधान में अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर अनुच्छेद 19 (2) में सीमा तय की गई है. इसके अनुसार व्यक्त निजी विचार पर अंकुश लगाना मुश्किल है.

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