बच्चों की आकांक्षाओं को उड़ान देती सुपर मॉम
बच्चों की आकांक्षाओं को उड़ान देती सुपर मॉम
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ब्रह्मांड और प्रकृति की रचना के बाद ईश्वर ने मनुष्य की जब सृष्टि की तो उसने स्त्री को पुरुष से भी सर्वश्रेष्ठ बनाया। उसे सौंदर्य दिया,सृजन का अधिकार दिया। यहीं नहीं मां की भूमिका निभाने के साथ उसे भगवान के बराबर दर्जा देते हुए उसे गुरु से भी बड़ा बनाया। यही वजह है कि दुनिया के किसी भी कोने में वह हो, मां सदैव एक जैसी रही। सूरत भले अलग हो मगर सीरत एक जैसी रहती है। सदियां बीत गई, मगर मां और बच्चे का संबंध कभी नहीं बदला। किसी भी रिश्ते में बेशक बदलाव आ जाए मगर मां-बच्चे के संबंध में हमेशा गर्मजोशी रहती है। अपने बच्चों को हमेशा पलकों की छांव में रखने वाली मां आज भी यही चाहती है कि उसके बच्चों पर किसी बुरे व्यक्ति का साया न पड़े। उसे अपने आंचल में छुपा कर रखती है। बच्चों को अच्छे-बुरे का पहला ज्ञान तो वही देती है।
घर की पाठशाला ही पहली गुरु
मां को गुरु दर्जा यों ही नहीं मिला। बच्चों को अनुशासन का पहला पाठ वही तो पढ़ाती है। नवजात के जन्म से लेकर नर्सरी में जाने तक मां वस्तुत: एक आदर्श पुरुष या नारी को ही तैयार कर रही होती है। अक्षर ज्ञान से लेकर रंगों का ज्ञान, प्रकृति से रूबरू कराने से लेकर अपने आसपास के बारे में इस तरह बताती-सिखाती चलती है कि बच्चा जब घुटनों के बल खड़ा होता है या दौड़ता है तो वह अपनी मां की नसीहतों को अवचेतन में रखता है। नसीहत देने की आदत मांओं की पुरानी आदत रही है। अब इसमें भी बदलाव आया है। हालांकि बेटियां आज भी अपनी मां से सलाह लिए बिना कभी कोई कदम नहीं उठाती। मगर बेटे अब बदल रहे हैं। 
बदल रही है माँ की भूमिका 
बच्चों को अपने आंचल से बांधे रखने का दौर अब खत्म हो चुका है। ज्यादातर आधुनिक माँएं इस बात को समझ चुकी हैं कि नसीहत देने से अच्छा है कि बच्चों की वे मार्गदर्शक बनें। वे अपने बेटे-बेटियों को ज्ञान के पंख देकर उन्हें उड़ान भरने देना चाहती हैं। कामकाजी ही नहीं, घरेलू महिलाएं भी बच्चों के कॅरियर की चिंता करती हैं। बच्चे पांचवी क्लास पार करते हैं तो उन्हें मांएं कुछ बनने की प्रेरणा देना शुरू कर देती हैं। 
बढ़ता आत्मविश्वास 
कम पढ़ी-लिखी मांओ में भी इन दिनों गजब का आत्मविश्वास देखा जा सकता है। वे हर हाल में बच्चों को पढ़ाना चाहती हैं। खुद नहीं पढ़ा सकतीं तो ट्यूटर रख लेती हैं। कभी-कभार स्कूल जाकर बच्चे की प्रगति रिपोर्ट भी ले लेती हैं। परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ती। पिता बेशक सुबह बिस्तर पर सोया रहे। मगर यह मां ही है, जो बच्चे को उठाकर स्कूल के लिए तैयार करती हैं। उनका बस्ता ठीक करने से लेकर लंच बॉक्स तक तैयार करती हैं। यहीं नहीं उन्हें स्कूल वैन तक में बैठाती हैं। कुछ मांएं तो स्कूल तक छोडऩे जाती हैं। चाहे वे रिक्शे पर ले जाएं या फिर अपनी कार में। बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए कई मांओ ने अपने कॅरियर तक की परवाह नहीं की। ऐसी कई मिसाल हैं जिनमें महिलाओं ने बच्चों का भविष्य बनाने के लिए अपने भविष्य को दांव पर लगा दिया। 
भारतीय माँ सबसे सजग 
दुनिया भर में भारतीय माँएं सबसे सजग हैं। उनमें लगातार बदलाव आ रहा है। अगर कोई महिला कामकाजी नहीं भी है तो भी वह अपने बच्चों के भविष्य के लिए उतनी ही चिंतित हैं। वह उतनी ही व्यस्त हैं जितनी कोई कामकाजी महिला। अगर वह थोड़ी भी पढ़ी लिखी है तो वह अखबारों से न्यूज चैनलों से ज्ञान हासिल कर रही है। यहां तक कि वह इंटरनेट खंगाल कर भी बच्चों के बारे में नई जानकारी हासिल करने के साथ उन्हें नवीनतम सूचनाएं दे रही हैं। वह अब दूसरों से राय नहीं लेतीं, वह सूचना तंत्र से अपनी राय खुद बना रही हैं। 
अब दीन-हीन नहीं है माँ 
एक जमाना था कि पिता ही बच्चों के भविष्य का निर्णय करते थे। अनुशासन का डंडा उन्हीं का चलता था। पिता डाक्टर हो तो वह बच्चों को भी अपने जैसा बनाने की जिद पाल लेता था। और मांए दरवाजे पर खड़ी सिर पर आंचल डाले चुपचाप सुनती रहती थीं। लेकिन अब ऐसा नहीं है। वह हस्तक्षेप करती हैं, क्योंकि वह बच्चों की क्षमता के बारे में अपने पति से ज्यादा जानती हैं। आखिर नर्सरी से लेकर हायर सेकेंडरी तक बच्चों को तैयार करने में उसकी भी कुछ भूमिका रही है।

 

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