वर्षेण भूमिः पृथिवी वृतावृता सानो दधातु भद्रया प्रिये धामनि धामनि।
इसका अर्थ है. "जल धरती पर वर्षा करता है. इससे धरती हरी भरी रहती हैं. जो कि सभी को अच्छी लगती है. जो सभी को सुखद बनाती है" अर्थात् जल के साथ-साथ सभी ऋतुओं को अनुकूल रखने का वर्णन वेदों में मिलता है। ऋग्वेद में स्पष्टतया व्यंजित है. जब हमारे वेद वेदांग भी हमें अनादि कालों से पर्यावरण, जल का महत्व बता रहे हैं समझा रहे हैं तो फिर हम इस ओर जागृत क्यों नहीं हो रहे हैं. प्रतिवर्ष जब गर्मी का मौसम लगभग शुरू होने लगता है तब हमें जल संपदा की याद आती है और फिर हम जल को सहेजने के लिए कुंआ खोदने लगते हैं अर्थात् जब प्यास लगती है तभी हम कुंआ खोदते हैं।
जल, जंगल, जमीन, पर्वत, पठार, मैदान, वायुमंडल सभी हमारे पर्यावरण के अंग हैं. यदि ये सुरक्षित नहीं रहेंगे तो हमारा अस्तित्व भी अधिक समय तक नहीं रहेगा. हमें पर्यावरण का भी ध्यान रखना होगा. उत्तरांचल और उत्तराखंड के जंगलों की आग हमें यही सब संकेत दे रही है. उत्तराखंड में घने जंगल जल गए. इसके बाद पर्यावरण में बदलाव आया. इस बार गर्मी के मौसम में तापमान करीब 50 डिग्री सेल्सियस से उपर तक पहुंच गया. गर्मी में इतना तापमान पहले कभी नहीं रहा।
आखिर हम अपने पर्यावरण को ही क्यों खतरे में डाल रहे हैं. जो जल धरती के 70 प्रतिशत भाग पर है आज वह पीने योग्य स्थिति में एक लोटाभर भी नहीं मिल पा रहा है. हमें गंभीरता से विचार करना होगा. वह सूर्य जो कि जीवनदायी रश्मियों का प्रदाता है. जिस सूर्य की धूप से हमें विटामिन डी की प्राप्ति होती है उसकी धूप से बचने के लिए हमें नकाब की आवश्यकता क्यों पड़ रही है. आखिर सन बर्न क्रीम और समर सूट क्यों उपयोग में आ रहे हैं। क्या इस ओर हमने ध्यान दिया है?
हमारे वायु मंडल में आने वाली हानिकारक किरणों जिसे हम पराबैंगनी किरणें कहते हैं उनसे रक्षा के लिए ओजोन लेयर होती है लेकिन इस ओजोन परत में ही छिद्र हो रहे हैं ये बड़े हो रहे हैं जिससे हम तक सूर्य की पराबैंगनी किरणें भी पहुंच रही हैं. अब सवाल यह है कि इस स्थिति को कैसे ठीक किया जाए ऐसी स्थिति को वन संपदा बढ़ाकर सही किया जा सकता है? आज लोग मीलों मील पानी के लिए भटक रहे हैं. मगर यदि सरकारों द्वारा चलाई जा रही योजनाऐं सही तरह तक लोगों तक पहुचे या इन पर सही तरह से काम हो तो परिणाम सकारात्मक होंगे।
केवल सरकार ही नहीं सभी को जागरूक होकर इस दिशा में प्रयास करने होंगे. तालाबों का निर्माण, वॉटर रिचार्जिंग, वॉटर हार्वेस्टिंग से हम बेेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं. गर्मी के दिनों में एक बड़ी समस्या है विद्युत आपूर्ति की यदि हम ऊर्जा के एक और स्त्रोत जैसे सूर्य से विद्युत का निर्माण जिसे सौलर एनर्जी कहते हैं इसका प्रयोग करें तो बेहतर परिणाम सामने आ सकते हैं. ऐसे में सरकारें अपनी विद्युत योजनाओं को लोगों तक निर्बाध गति से 24 घंटों तक पहुंचा पाऐंगी और पर्यावरण का नुकसान भी नहीं होगा. पर्यावरण का सहेजना जन-जन की जिम्मेदारी है एसे में सरकार और जनता दोनों को इससे सरोकार होना चाहिए।
'लव गडकरी'