अब इस किसान की कौन सुने!
अब इस किसान की कौन सुने!
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इन दिनों नेताओं द्वारा धार्मिक कट्टरता के मसलों को भुनाया जा रहा है। कांग्रेस सत्ता में वापसी का हर प्रयास कर रही है और भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के हर वार को खाली करने में लगी है। ऐसे में सत्ता का यह संग्राम खूब मनोरंजक नज़र आ रहा है लेकिन इन सभी के बीच देश में सहिष्णुता बनाम असहिष्णुता का माहौल बनाया जा रहा है। जैसे देश में कोई मसला शेष न बचा हो। हाालांकि संघीय और राज्य स्तर पर देश के विभिन्न राज्या में विद्युत प्रदाय, सुलभ सड़कें और साफ पेयजल एक समस्या बनी हुई है लेकिन इन असल मुद्दों को छोड़कर नेता कभी अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर बवाल मचाते हैं तो कभी बीफ मसले पर इतने मुखर हो जाते हैं कि देश का माहौल सांप्रदायिक होने लगता है।

अब तो हद हो गई। कांग्रेस एंटी इंकंबेंसी लाने के इतने पीछे पड़ी है कि खुद उसके महासचिव स्तरीय नेताओं को नहीं समझ आ रहा है कि वे क्या बोल रहे हैं। यही नहीं भाजपा कांग्रेस के युवराज के निकट भविष्य में कमान संभाले जाने की संभावनाओं से बौखला रही है ऐसे में राहुल को भी विदेशी नागरिक बनाने का प्रयास किया जा रहा है। मगर इन सभी के बीच भारत का हर वर्ग परेशान है। न तो दालों के दाम कम होने का नाम ले रहे हैं और न ही देशभर के विभिन्न राज्यों में किसान आत्महत्या थमने का नाम ले रही है।

महाराष्ट्र की हालत तो बेहद खराब है। यहां पर इस बार भी सूखे की स्थिति है। बारिश का समय निकले अभी अधिक समय नहीं हुआ है और यहां अभी से सूखे के हालात हैं। मराठवाड़ा में किसान बहुत मजबूर हैं। उन्हें अपने खेत तक बेचना पड़े हैं। जिनके खेत मौजूद हैं वे लाचारी का जीवन जी रहे हैं। कर्ज और सूखे की मार ने किसान को आत्महत्या करने पर विवश कर दिया है। मध्यप्रदेश जिसके लिए अब तक कहा जाता था। 

मालव माटी गहन गंभीर डग - डग रोटी पग - पग नीर। ऐसे प्रदेश में भी किसान आत्महत्या की राह पर चल पड़े हैं। आखिर आत्महत्या ही किसान के लिए एक पर्याय बच गया है। किसान मेहनत से और कर्ज लेकर महंगे बीजों का प्रबंध कर रहा है। जैेस तैसे खाद का प्रबंध करता है मगर जब फसल पकने की बारी आती है तो अतिवृष्टि और ओलावृष्टि के कारण किसान की फसल बेकार हो जाती है।

हालांकि अभी इस मौसम में सर्दी का असर अधिक नहीं हुआ है मगर माना जा रहा है कि जोरदार बारिश के बाद अब सर्द मौसम भी अपना ज़ोर दिखाएगा। ऐसे में सर्दी से फसलें झलसने का और आलू व कंद उपजने की बजाय जमीन में खराब होने का अंदेशा है। ऐसे में मध्यप्रदेश के किसान भी आत्महत्या की राह चल पड़े हैं मगर यहां पर यह अच्छी बात है कि सरकार समय रहते जाग गई है और आत्महत्या करने वाले किसानों से मेल कर उनकी परेशानी जान रही है लेकिन किसानों को आश्वासनों से राहत नहीं मिल रही है उन्हें सरकार से आवश्यक कार्रवाईयों की उम्मीद है। 

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