शोहरत और घमंड सफलता के इर्द-गिर्द घूमते है
शोहरत और घमंड सफलता के इर्द-गिर्द घूमते है
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मेहनत और संघर्ष के बाद मिली कामयाबी और शोहरत वाकई लाजवाब होती है. जब रूकावटे आती है, असफलता मिलती है तो व्यक्ति निराश हो जाता है. फिर भी वह थकता हारता नहीं, अपने प्रयासो में जुटा रहता है और एक दिन उसकी बुलंदी का सितारा चमक ही जाता है. एक स्थिति यह भी होती है कि व्यक्ति को बिना मेहनत के या कम मेहनत के कामयाबी पा लेता है. दोनों ही स्थिति में नतीजा ये न हो कि व्यक्ति को उस शोहरत और बुलंदी का घमंड आ जाए.

ये सब कहने की बात है, ‘‘मैं कामयाब होगा तो घमंड मुझे छु भी नहीं पाएगा’’. जब कोई वाकई कामयाब होगा तो घमंड और अहं से अछुता नहीं रह पाता. शोहरत उसे अहं देती है और अहं अपने आप जाता है, उस व्यक्ति को इसकी जानकारी भी नहीं लगती. अहं हमें पतन की तरफ ले जाता है. इस लिए अहं से दूर रहने में भलाई है. आसमां को छू लो, मगर पैर जमीं पर रखो, क्योंकि आसमां की कोई जमीं नहीं होती. ये बात असल जिंदगी के भी अनुकूल है. जिसे कामयाबी मेहनत और संघर्ष के बाद मिली है, उस व्यक्ति के पैर जमीन पर होते है. ये बात अलग है कि शोहरत की चकाचौंध में वह अंधा हो जाए, मगर अंत में अहं टूटता ही है.

‘‘गजनी’’ फिल्म में आमिर खान का डायलॉग था, मैं कर सकता हूं, ये विश्वास है मगर मैं ही कर सकता हूं, ये घमंड है. इस बात से समझा जा सकता है, कुछ भी स्थायी नहीं है. अगर आप अहं और घमण्ड में टूट कर जिंदगी जीएंगे तो कब आपका रूतबा बदल जाए, इसकी खबर आपको भी नहीं लगेगी. कामयाबी को बरकरार रखने के लिए जरूरी है कि अपनी जड़ो से मजबूत रहे. अपनी जड़ो कां भुले नहीं, जड़े ही व्यक्ति को बुरे से बुरे समय में लड़ने का हौंसला देती है और घमंड से दूर रखने में मदद करते है.

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