हड़ताल के बीच एक दिन का वह सफर
हड़ताल के बीच एक दिन का वह सफर
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आप प्रतिदिन काम पर जाते हैं, मगर जब आपको एक दिन के लिए बस, ट्रेन और कोई भी साधन न मिले तब आप क्या करेंगे। आप परेशान हो जाऐंगे। आज देशभर में ट्रक ट्रांसपोर्टर्स और बस आॅपरेटर्स द्वारा मोटर यान नियमन में बदलाव किए जाने और दुर्घटना होने पर वाहन चालक को 10 वर्ष कारावास और जुर्माना दोनों की सजा दिए जाने को लेकर हड़ताल पर हैं लेकिन इस हड़ताल के बीच खेतों के बीच सरपट दौड़ती सीटी बजाती भारतीय रेल चलती रही। जी हां, रेल एक ऐसा ज़रिया है जिसके माध्यम से लोग सुगमता तक एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच सकते हैं।

साथ ही सामान को भी सरलता से गंतव्य तक पहुंचाया जा सकता है। अब इस रेलगाड़ी में हड़ताल के बीच जब सफर करने का अवसर मिल जाए तो मुसाफिर कुछ अलग हो जाता है। जी हां, भारतीयता के रंग भी यहीं मिलते हैं और जीवन के ढंग भी। यह रेलगाड़ी अब सरपट दौड़ते हुए सीटी बजाते हुए गांवों से दौड़ती है लेकिन अब यह काला धुंआ कम ही उड़ाती है। प्रतिदिन समय पर पहुंचने की भागमभाग में यात्री बस के साधन से अपना सफर तय करते हैं ऐसे में रेल के सफर का अवसर मिलने पर वे कुछ अलग अनुभव करते हैं।

हां, इस सफर में न तो धक्का - मुक्की हुई और न ही सीट के लिए कोई लड़ाई। आज रेल में किस्मत से सफर करने का अवसर मिला तो काफी सुखद अनुभव हुआ। मगर रेल में सफर के अनुभव भी कुछ अलग - अलग ही रहे। रेल की बोगी में सीट पर बैठे तो यहां यात्री के स्थान पर बीड़ी आराम कर रही थी। फिर कुछ यात्री आए और कारवां बढ़ता गया। रेल स्टेशन पर खड़े लंबा समय हो गया तो लोग उंघने लगे। उनींदे से होते लोग ट्रेन के चलने का इंतजार करते रहे। इस बीच कुछ और यात्री आए और ट्रेन में जगह देख पसरने ही लगे। जैसे बस के कंजस्टेड सफर से आज ही आजाद हुए हों और सारी कसर पूरी कर लेना चाहते हों। ट्रेन की इस बोगी में चर्चाओं का दौर चला। ट्रेन रूकने पर फेरीवालों की आवाज़े आती रहीं।

बोगी में पंखे तो चल रहे थे लेकिन रात्रि में चालू किए गए बल्ब बुझाए नहीं गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान और उर्जा की बचन करने की अपील यहां भी बेअसर नज़र आई। हां, भारतीयता के दर्शन यहां बेहद आसान हो गए। यात्री अधिकार से पीने के लिए पानी मांग रहे थे तो दूसरा व्यक्ति उन्हें उतने ही जतन से पानी की बोतल दे रहा था। साथ बैठे लोगों से पानी पीने के लिए आॅफर करने की बात से ऐसा लगा जैसे पश्चिमी शहरों के इस दौर में आज भी इंसानियत जिंदा है। 

 

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