आप सभी जानते ही हैं कि इस समय चैत्र नवरात्रि चल रही है और आज इस पावन पर्व का आखिरी दिन है. ऐसे में नवरात्र का समापन दुर्गा नवमी के साथ हो जाता है. वहीँ आज नवमी है और इसी दिन कई लोग अपना व्रत खोलते हैं. इस दिन घरों में हवन किये जाते हैं साथ ही कन्याओं को पूजा जाता है. दुर्गा नवमी के दिन सबसे पहले मां सिद्धिदात्री की विधि विधान के साथ पूजा की जाती है. इसी के साथ आप सभी को बता दें कि इस बार चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन ही राम नवमी का उत्सव भी मनाया जा रहा है और माना जाता है कि इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं माता सिद्धिदात्री के बारे में.
माता सिद्धिदात्री - कहा जाता है माता सिद्धिदात्री को मां सरस्वती के रूप में पूजा जाता है. जी दरअसल मां अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धि प्रदान करती हैं और मां सिद्धिदात्री की आराधना के साथ ही नवरात्र अनुष्ठान का समापन हो जाता है. कहा जाता है भगवान शिव को शक्ति प्रदान करने कारण मां भगवती का नाम सिद्धिदात्री पड़ा. मां की कृपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ. इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर कहलाए. जी हाँ, वहीँ माता की आराधना से सभी प्रकार के ज्ञान की प्राप्ति होती है. कहते हैं माता की आराधना करने वालों को कभी संकट का सामना नहीं करना पड़ता है और मां की आराधना को मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है.
जी दरअसल मां सिद्धिदात्री की आराधना करने से मृत्यु का भय दूर हो जाता है और अचानक होने वाली दुर्घटनाओं से भी बचाव होता है. कहा जाता है माता की उपासना में हल्के बैंगनी रंग के वस्त्रों को धारण करने चाहिए और माता सिद्धिदात्री की पूजा में नौ तरह के फल-फूल अर्पित किए जाने का विधान है. वहीँ नवमी का दिन चंद्रमा से संबंधित पूजा के लिए उत्तम है और नवरात्रि में नौवें दिन तिल का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान अवश्य करना चाहिए. इसी के साथ मां सिद्धिदात्री की उपासना से भक्तों को सभी कामनाओं की पूर्ति हो जाती है.
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