दिवाली की 3 पौराणिक कहानियां
दिवाली की 3 पौराणिक कहानियां
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हर साल दिवाली का पर्व धूम-धाम से मनाया जाता है। ऐसे में इस साल यह पर्व कल यानी 4 नवम्बर के दिन है। तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं दिवाली की वह 3 पौराणिक कहानियां जो आपको जरूर जाननी, पढ़नी और सुननी चाहिए।

सतयुग की दीपावली -  सबसे पहले दीपावली सतयुग में ही मनाई गई। जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो इस महा अभियान से ही ऐरावत, चंद्रमा, उच्चैश्रवा, परिजात, वारुणी, रंभा आदि 14 रत्नों के साथ हलाहल विष भी निकला और अमृत घट लिए धन्वंतरि भी प्रकट हुए थे। इसी के चलते स्वास्थ्य के आदिदेव धन्वंतरि की जयंती से दीपोत्सव का महापर्व आरंभ होता है। इसी महामंथन से देवी महालक्ष्मी जन्मीं और सारे देवताओं द्वारा उनके स्वागत में प्रथम दीपावली मनाई गई। 

त्रेतायुग की दीपावली - त्रेतायुग भगवान श्रीराम के नाम से जाना जाता है। महाबलशाली राक्षसेन्द्र रावण को पराजित कर 14 साल वनवास में बिताकर श्री राम के अयोध्या आगमन पर सारी नगरी दीपक से सजाई गई और यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक दीप-पर्व बन गया।

द्वापर युग की दीपावली - द्वापर युग श्रीकृष्ण का लीलायुग रहा। कहा जाता है कृष्ण के बचपन में इंद्र पूजा का विरोध कर गोवर्धन पूजा का क्रांतिकारी निर्णय क्रियान्वित कर श्रीकृष्ण ने स्‍थानीय प्राकृतिक संपदा के प्रति सामाजिक चेतना का शंखनाद किया और गोवर्धन पूजा के रूप में अन्नकूट की परंपरा बनी। कूट का अर्थ है पहाड़, अन्नकूट अर्थात भोज्य पदार्थों का पहाड़ जैसा ढेर। श्री कृष्ण-बलराम कृषि के देवता हैं और उनकी चलाई गई अन्नकूट परंपरा आज भी दीपावली उत्सव का अंग है। आपको बता दें कि यह पर्व प्राय: दीपावली के दूसरे दिन प्रतिपदा को मनाया जाता है। 

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