राम-जानकी विवाह यात्रा पर मस्जिद के पास पथराव..! आखिर मुस्लिमों में इतनी नफरत क्यों?

राम-जानकी विवाह यात्रा पर मस्जिद के पास पथराव..! आखिर मुस्लिमों में इतनी नफरत क्यों?
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पटना: बिहार के दरभंगा जिले के बाजितपुर और तरौनी गाँव में इस वर्ष राम विवाह की झाँकी पर कट्टरपंथी मुस्लिमों द्वारा पथराव की घटना ने एक बार फिर धार्मिक हिंसा को उजागर किया है। यह झाँकी हर साल विवाह पंचमी के अवसर पर निकाली जाती है, और पिछले बीस सालों से यह परंपरा चली आ रही थी। हालांकि, इस बार जैसे ही झाँकी एक मस्जिद के पास पहुँची, मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने इसका विरोध किया और झाँकी में शामिल लोगों से विवाद करने लगे। इस विवाद के बाद मस्जिद और आसपास के क्षेत्र से पथराव शुरू हो गया। कुछ हमलावरों ने लाठियाँ और डंडे लेकर लोगों पर हमला किया, जिससे अफरातफरी मच गई और कई लोग घायल हो गए। घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है और स्थिति को काबू करने के लिए भारी पुलिस बल तैनात किया गया।

 

यह घटना इस बात की ओर इशारा करती है कि धार्मिक जुलूसों और परंपराओं के प्रति कुछ कट्टरपंथी मानसिकता वाले समूहों की असहिष्णुता लगातार बढ़ती जा रही है। यह घटनाएँ केवल एक स्थान या एक समय तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि देशभर में कई बार इस तरह की घटनाएँ देखी जाती हैं, खासकर जब हिन्दू समुदाय के लोग अपने धार्मिक कार्यक्रमों को मनाते हैं। सवाल उठता है कि आखिर क्यों हर बार मुस्लिम इलाकों में हिन्दू जुलूसों पर हमले होते हैं? क्या इसका कोई ठोस कारण है, या फिर यह सिर्फ मजहबी असहमति और नफरत का परिणाम है? मुहर्रम के जुलूसों पर तो कोई पत्थर नहीं चलता, ताजियों पर कोई हमला नहीं हुआ, हज्ज यात्रियों को कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा,, तो फिर हमेशा हिन्दुओं के जुलूसों पर ही हमले क्यों ? इस पर कुछ वोट बैंक में लिप्त राजनेता तर्क देते हैं कि मुस्लिम इलाके में क्यों गए? आबादी बढ़ती जा रही है, मस्जिदें बनती जा रही है, इलाके भी बढ़ रहे हैं, तो क्या बहुसंख्यक समुदाय हर बार अपना रास्ता बदलता चला जाए? और फिर आखिर में अपने घर तक ही सिमट जाए ? 

यह समझना जरूरी है कि इस्लाम अपने अनुयायियों को अन्य धर्मों को शिर्क और कुफ्र (पाप) मानने की शिक्षा देता है, लेकिन इस्लाम या कोई भी अन्य धर्म किसी को अपनी आस्था पर हमले करने का अधिकार नहीं दे सकता। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जहाँ संविधान ने हर व्यक्ति को अपनी धार्मिक आस्थाओं का पालन करने का अधिकार दिया है। इसका मतलब यह नहीं कि किसी अन्य धर्म की आस्था या धार्मिक कार्यों पर हमला किया जाए, भले ही वह किसी मस्जिद के पास क्यों न हो रहा हो।

कभी-कभी यह तर्क दिया जाता है कि मुस्लिम समुदाय ने हिंदू जुलूसों पर पथराव किया क्योंकि जुलूस में भड़काऊ नारे लगे थे, लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसे हमलों का कारण सिर्फ नफरत और असहिष्णुता होता है। आज बांग्लादेश में हम देख ही रहे हैं, मंदिरों में घुस-घुसकर हमले हो रहे हैं, वहां कोई नारे नहीं लगा रहा, कोई जुलुस नहीं निकल रहा, लेकिन हिन्दुओं को अपने घरों में या अपने गली के मंदिरों में भी पूजा नहीं करने दिया जा रहा, कारण - इस्लाम मूर्ति पूजा को पाप मानता है। यही सोच लेकर कट्टरपंथी पूरी दुनिया में आतंक मचाए हुए हैं। 

समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब वोट बैंक की राजनीति में लिप्त राजनेता कट्टरपंथियों के इस तरह के कुकर्मों पर खामोश रहते हैं या इसे नजरअंदाज करते हैं। वे इन घटनाओं को सिरे से नकारते हुए अपने राजनीतिक फायदे के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं, जो समाज में और भी ज्यादा नफरत और कड़वाहट पैदा करता है।

समाज में शांति और सौहार्द बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि ऐसी घटनाओं की सख्ती से निंदा की जाए और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई हो। साथ ही, एक ऐसे वातावरण की आवश्यकता है जहाँ सभी धर्मों और समुदायों को एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए अपनी धार्मिक परंपराओं का पालन करने का अधिकार हो। यही सच्ची धर्मनिरपेक्षता और मानवता की परिभाषा होगी।

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