सिर्फ 2 सेकंड की गड़बड़ी से फेल हुआ SSLV रॉकेट
सिर्फ 2 सेकंड की गड़बड़ी से फेल हुआ SSLV रॉकेट
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नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 7 अगस्त 2022 को भारत का नया रॉकेट स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल पेश किया था. किन्तु रॉकेट पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाया. उसने दोनों सैटेलाइट्स को गोलाकार कक्षा में डालने की जगह अंडाकार कक्षा में डाल दिया था. इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने इसका कारण बताया. एस. सोमनाथ ने कहा कि रॉकेट एक्सेलेरोमीटर में 2 सेकेंड के लिए कुछ गड़बड़ी आ गई थी. जिसके कारण रॉकेट ने दोनों सैटेलाइट्स EOS-2 एवं AzaadiSAT को 356 किलोमीटर की गोलाकार कक्षा की जगह 356x76 किलोमीटर की अंडाकार कक्षा में डाल दिया था. अब ये सैटेलाइट्स किसी काम के नहीं बचे. क्योंकि इनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है. ये गड़बड़ी एक सेंसर के फेल होने के कारण हुई. जिससे रॉकेट की दिशा और गति अंतिम वक़्त में बदल गई. 

SSLV तीन स्टेज का रॉकेट जो पूर्ण रूप से सॉलिड प्रोपेलेंट पर चलता है. यह 500 किलोग्राम वजन तक के सैटेलाइट्स को कक्षा में तैनात करने के लिए बनाया गया है. इसरो चीफ ने बताया कि हम सभी वैज्ञानिक कई प्रकार की नाकामियों के लिए तैयार रहते हैं. किसी भी मिशन में कामयाबी और नाकामी को एकसाथ एक बराबर देखा जाता है. एक्सेलेरोमीटर एवं उसके सेंसर्स रॉकेट की गति पर नजर रखते हैं. उसे नियंत्रित करते हैं. एक्सेलेरोमीटर को यदि फेल होना होता तो वह लॉन्च के वक़्त भी हो सकता था. किन्तु उसने रॉकेट को सही से बहुत ऊपर तक पहुंचाया. मगर उसके बाद उसकी गणनाओं में कुछ परिवर्तन आ गया. तीन स्टेज के रॉकेट में तीसरे स्टेज पर सैटेलाइट होता है. दूसरे स्टेज से अलग होते ही इसमें वो गड़बड़ी दो सेकेंड के लिए दर्ज की गई. रॉकेट में लगे इंटर्नल कंप्यूटर को इसका अहसास हुआ. तो उसने साल्वेजिंग ऑपरेशन मतलब उसने बचाव प्रक्रिया आरम्भ कर दी. सोमनाथ ने फिर बताया कि बचाव प्रक्रिया में आंतरिक कंप्यूटर क्लोज्ड लूप गाइडेंस की जगह ओपन लूप गाइडेंस आरम्भ कर देता है. कंप्यूटर को इसका भी प्रोसेस पहले से पता होता है. वह रॉकेट को अपने मार्ग से अलग नहीं होने देता. किन्तु एक बार ओपन लूप गाइडेंस आरम्भ हुआ तो सैटेलाइट्स के सही ऑर्बिट में पहुंचने की संभावना कम हो जाती है. ऐसे में आंतरिक कंप्यूटर ये कमांड देता है कि अब हम तब तक आगे नहीं जा सकते, जब तक अगला स्टेज फायर नहीं होता. किसी प्रकार से सैटेलाइट को तीसरे स्टेज से अलग करना होगा. SSLV का तीसरा स्टेज लिक्विड स्टेज नहीं है. यह सॉलिड स्टेज है. इसे बीच मार्ग में रोकना संभव नहीं होता. रॉकेट में लगा कंप्यूटर प्रतीक्षा करता है कि दूसरे स्टेज में ये समस्या हुई है तो तीसरा स्टेज आरम्भ होने पर परेशानी समाप्त हो सकती है. वह तीसरे स्टेज की फायरिंग पूरी होने तक प्रतीक्षा करता है. जैसे ही तीसरे स्टेज की फायरिंग पूरी हुई, उसने रॉकेट्स को अंतरिक्ष में छोड़ दिया. SSLV ने वहीं किया. SSLV ने ऑर्बिट में सैटेलाइट्स को छोड़ा तो मगर इस प्रक्रिया में छोटी सी कमी रह गई. क्योंकि रफ़्तार  कम हो गई थी. सैटेलाइट्स को अगर कक्षा में स्थापित करने की गति 7.3 किलोमीटर प्रतिसेकेंड होनी चाहिए. रॉकेट ने 7.2 किमी प्रति सेकेंड की गति हासिल कर ली थी. अब यह 40, 50 या 60 मीटर प्रति सेकेंड की दर से कमी महसूस कर रहा था. हमें इसे सर्कुलर ऑर्बिट में डालना था मगर रफ़्तार में आई इस कमी के कारण पेरिजी 76 किलोमीटर हो गई. सोमनाथ ने बताया कि अगर सैटेलाइट सर्कुलर की जगह अंडाकार ऑर्बिट में चली जाती है, तो उसमें एक ड्रैग आता है. यानी एक वायुमंडलीय ड्रैग होता है. इससे सैटेलाइट बहुत तेजी से नीचे आता है. 20 मिनट के आसपास सैटेलाइट अपनी कक्षा छोड़ देता है. यही हुआ SSLV द्वारा छोड़े गए सैटेलाइट्स के साथ. ये नहीं कह सकते मिशन पूर्ण रूप से फेल रहा. लेकिन हां नाकामी तो प्राप्त हुई. 

सोमनाथ ने बताया कि रॉकेट ने सही काम किया. उसके सभी स्टेज ठीक काम कर रहे थे. प्रोपल्शन सिस्टम सही काम कर रहा था. जब रॉकेट का एक्सेलेरोमीटर गड़बड़ हुआ तो रॉकेट के कंप्यूटर ने सोचा कि मैं इस रॉकेट को बचाता हूं. इसने बचाव प्रक्रिया आरम्भ भी की. जिसके कारण सैटेलाइट गलत ऑर्बिट में चले गए. इसका मतलब ये है कि एक्सेलेरोमीटर में कोई गड़बड़ नहीं थी, क्योंकि उन्होंने उसके बाद भी रॉकेट को आगे बढ़ाया. कंप्यूटर को एक्सेलेरोमीटर में छोड़ी सी गड़बड़ी मिली है, जो फिलहाल हमारी समझ के बाहर है. या फिर सेंसर के साथ कोई समस्या है. रॉकेट कंप्यूटर ने बताया कि एक्सेलेरोमीटर में दो सेकेंड की गड़बड़ी आई थी. इसके बाद वह ठीक हो गया था. मगर कंप्यूटर ने इसी दो सेकेंड को दोषी बनाया. PSLV यानी पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल 44 मीटर लंबा तथा 2.8 मीटर वाले व्यास का रॉकेट हैं. जबकि, SSLV की लंबाई 34 मीटर है. इसका व्यास 2 मीटर है. पीएसएलवी में चार स्टेज हैं. जबकि SSLV में तीन ही स्टेज है. पीएसएलवी का वजन 320 टन है, जबकि SSLV का 120 टन है. पीएसएलवी 1750 किलोग्राम वजन के पेलोड को 600 किमी तक पहुंचा सकता है. SSLV 10 से 500 किलो के पेलोड्स को 500 किलोमीटर तक पहुंचा सकता है. पीएसएलवी 60 दिन में तैयार होता है. SSLV केवल 72 घंटे में तैयार हो जाता है. फिलहाल SSLV को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड एक से छोड़ा जाएगा. मगर कुछ वक़्त पश्चात् यहां पर इस रॉकेट की लॉन्चिंग के लिए अलग से स्मॉल सैटेलाइल लॉन्च कॉम्प्लेक्स (SSLC) बना दिया जाएगा. तत्पश्चात, तमिलनाडु के कुलाशेखरापट्नम में नया स्पेस पोर्ट बन रहा है. फिर वहां से SSLV की लॉन्चिंग होगी. 

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