हिंदी के  प्रमुख  साहित्यकार थे ,श्री लाल शुक्ल
हिंदी के प्रमुख साहित्यकार थे ,श्री लाल शुक्ल
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श्री लाल शुक्ल हिंदी के प्रमुख साहित्यकारों में से एक थे. श्री लाल शुक्ल का जन्म 31 दिसम्बर 1925  को  लखनऊ के अतरौली गाँव में  हुआ था .श्री लाल शुक्ल ने अपना विधिवत लेखन साल 1954 से  शुरू किया और उनका पहला प्रकाशित  उपन्यास 'सूनी घाटी का सूरज' (1957) तथा पहला प्रकाशित व्यंग 'अंगद का पाँव' (1958) था .उन्होंने  अपने लेखन से ग्रामीण भारत कि परत दर परत का दर्शन कराने वाले उपन्यास   राग दरबारी में भारतीय  सरकारी सेवा कि व्यवस्था  पर करारी चोट की जिसके लिए उन्हें  साहित्य अकादमी पुरुस्कार से सम्मानित किया गया .उनके इसी उपन्यास पर दूरदर्शन के लिए एक  धारवाहिक भी बनाया गया.श्री लाल शुक्ल जी को भारत सरकार ने  2008 में पद्मभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया था.

वे सहेज व्यक्तित्व के धनी थे और लोगो से  हमेशा  मुस्कुराकर मिला करते थे.  श्रीलाल शुक्ल जी ने गरीबी झेली, संघर्ष किया, मगर उसके विलाप से अपने  लेखन को कभी नहीं भरा। उन्हें नई पीढ़ी भी सबसे ज़्यादा पढ़ती है। वे नई पीढ़ी को सबसे अधिक समझने और पढ़ने वाले वरिष्ठ रचनाकारों में से एक रहे हैं .उनकी मृत्यु आज ही के दिन  28 अक्टूबर 2011 को हुई. वह ताउम्र  लिखते रहे हालाँकि अपने जीवन के अंतिम दिनों में गंभीर  बीमारी के चलते उनका पढ़ना और लिखना रुक गया था .

उनकी प्रमुख रचनाएं
सूनी घाट का सूरज (1957), अज्ञातवास (1962), ‘राग दरबारी (1968), आदमी का ज़हर (1972), सीमाएँ टूटती हैं (1973), ‘मकान (1976), ‘पहला पड़ाव’(1987), ‘विश्रामपुर का संत (1998),
रागविराग (2001) ‘यह घर मेरी नहीं (1979), सुरक्षा और अन्य कहानियाँ (1991), इस उम्र में (2003) 

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