Sonchiraiya Review : दर्शकों को पसंद आई चंबल के डाकुओं की कहानी
Sonchiraiya Review : दर्शकों को पसंद आई चंबल के डाकुओं की कहानी
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हाल ही में सुशांत सिंह राजपूत और भूमि पेडनेकर की फिल्म 'सोनचिड़िया' रिलीज़ हुई है जिसके लिए सभी इंतज़ार कर रहे थे. ये फिल्म चंबल के डाकुओं पर आधारित है. इस फिल्म की कहानी सत्य घटना पर आधारित है. तो इस समय हम बताने जा रहे हैं इसका पब्लिक रिव्यु क्या रहा है. 

मूवी रिव्यू: सोन चिड़िया
कलाकार: सुशांत सिंह राजपूत, रणवीर शौरी, भूमि पेडनेकर, मनोज बाजपेयी और आशुतोष राणा आदि.
निर्देशक: अभिषेक चौबे
रेटिंग: 3 

कहानी : सोनचिड़िया फिल्म डाकुओं की दुनिया को दर्शकों के सामने एक नई तरीके से पेश करती है. यह फिल्म डाकुओं की जिंदगी को लेकर हिंदी सिनेमा के दर्शकों का नजरिया बदलने का दम रखती है. फिल्म सोनचिड़िया की कहानी डाकू मान सिंह के गैंग कहानी है. गिरोह के सारे लोग उसे दद्दा कहते हैं, शायद पूर्व दस्यु मलखान सिंह इसी भ्रम में इस फिल्म की कहानी को अपनी कहानी मान बैठे हैं और अदालत तक जा पहुंचे हैं. फिल्म का दद्दा धर्म और भगवान में विश्वास करता है. सब उसका आदर भी करते हैं. इसके अलावा गिरोह में लखना और वकील सिंह का संघर्ष है. तीस-चालीस साल पहले एक युवती का अपने ससुरालवालों से विद्रोह है. यह विद्रोह वह अपने ससुर से एक मासूम को बचाने के लिए करती है. और, कहानी का टिपिंग प्वाइंट है दरोगा वीरेंद्र सिंह.  

क्यों देखें 
सुशांत की अदाकारी में दम है. वहीं शहरी किरदारों में दिखते रहे रणवीर शौरी ने वकील सिंह के किरदार में सबको चौंका दिया है. वहीं भूमि पेडनेकर का रोल कमाल ही रहा. इस फिल्म के लिए उनको बेस्ट विलेन के खूब अवार्ड्स मिलने वाले हैं. भूमि पेडनेकर का तो कहना ही क्या, वह फिल्म दर फिल्म खुद को मांज रही हैं, और उनकी चमक सोनचिड़िया से और निखरी है. मनोज बाजपेयी फिल्म में ज्यादा देर के लिए नहीं हैं, पर जितना भी हैं, असर छोड़ते हैं. आशुतोष राणा को जो कहा गया, उतना उन्होंने सलीके से कर दिया है.

डायरेक्शन 
डरेक्शन की बात करें तो तकनीकी तौर भी सोनचिड़िया काफी मजबूत है. अनुज राकेश का कैमरा फिल्म शुरू होते ही दर्शकों को कहानी का हिस्सा बनाने में कामयाब रहता है. मेघना सीन ने एडिटिंग टेबल पर अभिषेक और अनुज की मेहनत को इज्जत बख्शी है.

वहीं फिल्म की कमजोर कड़ी इसका संगीत है लेकिन डाकुओं के जीवन में पैदल भागते फिरते वैसे भी रस बचता कहां है, फिर भी मामे खान को बागी रे गाने में सुनना अच्छा लगता है. अभिषेक चौबे इस फिल्म के साथ अपने उस्ताद विशाल भारद्वाज से दो कदम आगे के निर्देशक बन चुके हैं.  

 

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