'कहीं हिजाब तो कहीं टोपी के लिए आंदोलन..', मद्रास हाई कोर्ट ने पुछा- देश बड़ा या धर्म ?
'कहीं हिजाब तो कहीं टोपी के लिए आंदोलन..', मद्रास हाई कोर्ट ने पुछा- देश बड़ा या धर्म ?
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चेन्नई: कर्नाटक में हिजाब को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। जहाँ कर्नाटक में हिजाब पहनने के अधिकार की माँग वाली याचिका पर सुनवाई के बाद मामले को बड़े बेंच के पास ट्रांसफर कर दिया गया है, वहीं मद्रास उच्च न्यायालय ने गुरुवार (10 फरवरी, 2022) को देश के कुछ इलाकों में जारी ड्रेस कोड विवाद पर हैरानी जताते हुए गंभीर टिप्पणी की है। दरअसल, तमिलनाडु में मंदिरों में गैर-हिंदुओं और विदेशियों के प्रवेश पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की माँग वाली याचिका पर मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने तीखी प्रतिक्रिया प्रकट की है। 

त्रिची स्थित एक्टिविस्ट रंगराजन द्वारा दाखिल की गई याचिका में कहा गया है कि गैर-हिंदुओं और विदेशियों की मौजूदगी मंदिरों की शुद्धता को दूषित करती है। याचिकाकर्ता ने यह भी माँग की है कि मंदिरों में एक सख्त ड्रेस कोड लागू किया जाना चाहिए और हिंदुओं को बिंदी, भस्म, धोती, साड़ी और सलवार कमीज पहननी चाहिए जो जिससे नास्तिकों को मंदिर में प्रवेश करने से रोका जा सके। इस पर टिप्पणी करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश (ACJ) मुनीश्वर नाथ भंडारी के नेतृत्व वाली मद्रास उच्च न्यायालय की बेंच ने पूछा कि, 'सर्वोपरि क्या है? यह देश है या धर्म?'।  अदालत ने कहा कि, 'मेरा मतलब है, यह वास्तव में चौंकाने वाला है, कोई हिजाब के लिए प्रदर्शन  कर रहा है, कोई टोपी के लिए, कोई अन्य चीजों के लिए जा रहा है।' इस प्रकार की चीजों के पीछे की मंशा पर सवाल खड़े करते हुए उन्होंने आगे पूछा कि, 'क्या यह एक देश है या धर्मों से विभाजित है या ऐसा ही कुछ है। यह बेहद आश्चर्यजनक है।'

इस तथ्य की तरफ संकेत करते हुए कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी ने कहा कि, 'हालिया मामलों से जो पता लग रहा है वह देश को मजहबी रूप से बांटने की कोशिश के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।' ACJ ने श्रीरंगम-आधारित एक्टिविस्ट रंगराजन नरसिम्हन द्वारा दाखिल की गई याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जो चाहते थे कि कोर्ट भक्तों के लिए ड्रेस कोड को सख्ती से लागू करने का आदेश दे, और गैर-हिंदुओं को पूरे तमिलनाडु के मंदिरों में प्रवेश करने पर रोक लगाए। 


हालाँकि, अदालत ने उनसे धार्मिक अनुष्ठान में इस्तेमाल किए जाने वाले ड्रेस कोड के रिवाज को दिखाने के लिए उदाहरण पेश करने के लिए भी कहा और यह स्पष्ट किया कि यह प्रथा अलग-अलग मंदिरों के लिए अलग-अलग है। अदालत ने याचिकाकर्ता से पूछा कि, जब कोई विशेष ड्रेस कोड नहीं है, तो उस पर डिस्प्ले बोर्ड लगाने का प्रश्न ही कैसे उठता है। वहीं जब याचिकाकर्ता ने आदेश माँगा, तो अदालत ने उनसे यह दिखाने के लिए कहा कि अगमास (अगम शास्त्र) के किस हिस्से में पैंट और शर्ट का जिक्र है। अदालत ने चेतावनी देते हुए कहा कि उन्हें अदालत के सामने व्यक्तिगत रूप से पेश होने से रोका जा सकता है और उन्हें उचित शब्दों का प्रयोग करने और इस प्रकार के विवाद और झगड़े से दूर रहने का निर्देश दिया।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, महाधिवक्ता आर षणमुगसुंदरम ने कोर्ट को बताया कि हर मंदिर अपने खुद के रिवाज का पालन कर रहा है और दूसरे धर्म से संबंधित लोगों को सिर्फ ‘कोडी मारम’ (फ्लैग मास्ट-जहाँ तक मंदिर का ध्वज लगा होता है) तक जाने की इजाजत है।उन्होंने याद किया कि मद्रास हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने पहले ही एक एकल न्यायाधीश के एक आदेश को निरस्त कर दिया था जिसमें ड्रेस कोड तय किया गया था क्योंकि यह रिट याचिका के दायरे से बाहर था और इसके साथ ही, आदेश ने व्यापक आक्रोश और बहस शुरू कर दी थी। उन्होंने अदालत से कहा कि, 'प्रत्येक मंदिर की अपनी प्रथा है। कुछ मंदिर गैर-हिंदुओं को कुछ क्षेत्रों में जाने की इजाजत देते हैं। गैर-हिंदू कोडी मारम (जहाँ तक मंदिर का ध्वज होता है) से आगे प्रवेश नहीं कर सकते। यही प्रथा है।' आखिर में, अदालत ने याचिकाकर्ता को मंदिरों में ड्रेस कोड के उल्लंघन को दिखाते हुए उनकी तस्वीरों के साथ एक हलफनामा दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।

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