मुंबई: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने कहा कि कुछ तत्व भारत के विकास को रोकना चाहते हैं तथा इसके मार्ग में बाधा डाल रहे हैं। हालांकि, किसी को डरने की जरुरत नहीं है, क्योंकि छत्रपति शिवाजी महाराज के समय भी ऐसी ही चुनौतियाँ थीं, किन्तु धर्म की शक्ति का इस्तेमाल करके उनसे निपटा गया था। भागवत 'तंजावरचे मराठे' नामक पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे, जिसे डॉ. मिलिंद पराडकर ने लिखा है। उन्होंने कहा कि धर्म केवल पूजा या अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सत्य, करुणा, और तपश्चर्या (समर्पण) जैसी व्यापक अवधारणाओं का प्रतिनिधित्व करता है।
भागवत ने यह भी कहा कि 'हिंदू' शब्द विविधताओं को स्वीकार करने का प्रतीक है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत 'वसुधैव कुटुंबकम' (दुनिया एक परिवार है) के विचार को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से अस्तित्व में आया है। उन्होंने यह भी बताया कि अतीत में भारत पर बाहरी आक्रमण होते थे, जिनसे लोग सतर्क रहते थे, किन्तु अब ये आक्रमण विभिन्न रूपों में नजर आ रहे हैं। भागवत ने रामायण की ताड़का और पूतना की कहानी सुनाते हुए बताया कि ताड़का का आक्रमण अराजकता फैला रहा था, किन्तु उसे राम और लक्ष्मण के एक तीर से मारा गया। वहीं, पूतना मौसी का भेष बदलकर आई थी और उसने शिशु कृष्ण को स्तनपान कराने का प्रयास किया, लेकिन कृष्ण ने उसे मार दिया।
भागवत ने कहा कि आज की स्थिति भी वैसी ही है। आक्रमण हर प्रकार से हो रहे हैं—चाहे वे आर्थिक, आध्यात्मिक या राजनीतिक हों। कुछ तत्व भारत के विकास को रोकने तथा इसके वैश्विक मंच पर उदय से भयभीत हैं, लेकिन वे सफल नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि जो लोग डरते हैं कि भारत के विकास से उनके व्यापार बंद हो जाएंगे, वे लोग देश के विकास की राह में बाधाएं खड़ी करने की कोशिश कर रहे हैं। वे सुनियोजित तरीके से हमले कर रहे हैं, चाहे वे शारीरिक हों या मानसिक। हालांकि, डरने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि शिवाजी महाराज के वक़्त में भी ऐसी ही परिस्थितियाँ थीं जब भारत के उत्थान की उम्मीद नहीं थी। भागवत ने कहा कि 'जीवनी शक्ति' (जीवन को संचालित करने वाली शक्ति) भारत की पहचान है तथा यह धर्म पर आधारित है। धर्म सृष्टि की शुरुआत से है तथा अंत तक इसकी आवश्यकता बनी रहेगी। उन्होंने भारत को एक भाग्यशाली और धन्य देश बताया।
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