स्मार्ट सिटीज: आ गये गलत चयन पद्धति के गलत नतीजे
स्मार्ट सिटीज: आ गये गलत चयन पद्धति के गलत नतीजे
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स्मार्ट सिटीज योजना के तहत चयन के लिए सरकार ने एक आकर्षक (या कहे फेशनेबल) तरीका घोषित किया था | मैंने इस चयन प्रक्रिया की शुरुआत में ही लिखा था कि इस मामले में यह सरासर तुगलकी तरीका हैं | अब इस तरीके के नतीजे 98 शहरों के नामों के रूप में और पहली किश्त में 20 शहरों के अंतिम चयन के रूप में सामने आ चुके हैं | यहाँ कोई यह ध्यान नहीं दे रहा हैं कि इस योजना के मूल वाजिब उद्देश्य क्या थे? और क्या इन शहरों का चयन इन उद्देश्यों के अनुसार हुआ हैं ? देखेंगे व समझेंगे तो हम पायेंगे कि कई ऐसे शहर छूट गए हैं, जो इस सूची में होना चाहिए थे और कई को पहली किश्त में ही होना चाहिए था | साथ ही कई ऐसे शहर चुन लिए गए हैं जो कि योजना के वाजिब उद्देश्यों कि दृष्टि से चयन के हक़दार नहीं थे | यानि गलत पद्धति के गलत नतीजे आ चुके हैं | ये नतीजे गलत क्यों है? 

यह समझने के लिए पहले हमें इस योजना के असली एवं वाजिब उद्देश्यों को समझना होगा | इस योजना की शुरुआत में शहरी विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर एक कंसेप्ट पेपर डाला गया था | जो कि फिर कई बार सुधरते हुए अब इस योजना की गाइडलाइन बन चुका है | इनमें वैसे तो योजना के कई उद्देश्य व कई लाभ बताये गए हैं; परन्तु वास्तव में गहराई से देखें व समग्र चिंतन करें तो पायेंगे कि इनमें से केवल दो ही उद्देश्य वाजिब हैं और इतने मजबूत आधारों पर टिके हैं कि इस योजना की हर प्रकार की आलोचना का सामना करते हुए भी इस योजना को अपनाने योग्य एवं श्रेष्ठ योजना साबित करने के लिए ये दो ही काफी हैं | शेष गिनाये गए उद्देश्य या तो विवादस्पद है या उनके लिए अन्य कदम या योजनाये अधिक प्राथमिकता रखती है अर्थात उन उद्देश्यों के मद्देनजर ही देखें तो कई वैकल्पिक कदम हैं जो इस योजना की तुलना में अधिक प्राथमिकता से जरुरी है | 

यदि उन उद्देश्यों को ही ध्यान में रखकर सोचें तो पाएंगे कि इस योजना पर इतना निवेश करना हमारी प्राथमिकता में नहीं आ सकता है | मैंने इस सम्बन्ध में जो विश्लेषण व चिंतन किया है; वह पूरा लिखूंगा तो एक पुस्तिका बन जायेगी; इसलिए वह सब यहाँ नहीं लिख रहा हूँ | परन्तु ये दो उद्देश्य ऐसे है कि इस योजना को खुद ही प्राथमिकता दिलाने में सक्षम हैं | इसीलिए केवल इन्हीं दो, वास्तव में ठोस व वाजिब उद्देश्यों का ही यहाँ उल्लेख कर रहा हूँ | 

1) देश के विकास को गति देने के लिए देशी-विदेशी पूंजी निवेश बहुत आवश्यक है और उसके लिये, देश में कई शहरों में आधुनिकतम संसाधन-सुविधाये व स्मार्ट प्रशासन व स्मार्ट प्रक्रियाएं होना भी जरुरी है, स्मार्ट शहरों के होने से देश में व देश के प्रति सकारात्मक माहौल बनेगा, साथ ही हममें भी विकसित देशों की बराबरी करने का उत्साह आयेगा | इसके साथ ही, पर्यटन को इतने शहरों के स्मार्ट बनने से जबरदस्त बढ़ावा मिलेगा और उससे भी देश समृद्ध बनेगा | इसलिए यह कहना उचित ही हैं कि ये शहर देश के विकास में ग्रोथ इंजिन्स की भूमिका निभायेंगे | 

2) इन शहरों के देश के विभिन्न राज्यों में यानि सभी दिशाओं में फैले होने से उनके आसपास के क्षेत्र सहित पुरे प्रदेश के विकास को गति मिलेगी और इनके जरिये विकास के प्रादेशिक असंतुलन को भी कम किया जा सकेगा (परन्तु, अब गलत चयन के कारण, कहना पड़ रहा है कि "किया जा सकता था") | केंद्र सरकार ने कंसेप्ट पेपर व गाइडलाइन में इन उद्देश्यों का अस्पष्टता के साथ उल्लेख तो किया; लेकिन योजना के क्रियान्वयन में इन्हें भुला ही दिया और इस अच्छी योजना को सस्ती लोकप्रियता वाली 'स्पर्धा की लटकेबाजी' में उलझा दिया | यदि यह स्पर्धा वास्तव में संभावित दावेदार शहरों के बीच होती (अर्थात उनकी विशेषताओ व गुण-दोषों के आधार पर होती ) तो निश्चित ही सही होती | लेकिन इस स्पर्धा का तरीका ऐसा बेतुका बनाया गया कि उसे तुगलकी ही कहा जा सकता है |

दरअसल, यह स्पर्धा दावेदार शहरों के बीच नहीं, उनकी स्वशाशन संस्थाओं (नगर निगमों) के आयुक्तों की कप्तानी में ठेके से जोड़े गये तकनिकी सलाहकारों की टीमों के बीच हुई | यह ऐसा ही हुआ जैसे किसी कॉलेज में कोई नए आकर्षक कोर्स में प्रवेश के लिए छात्रों की प्रतिभा का मूल्यांकन न हो बल्कि उनके पालकों की कार्यक्षमता की परीक्षा ली जाए | जिसमें यह भुला ही दिया जाए कि 'नया कोर्स किस प्रकार के छात्रों के लिए अनुकूल व उपयोगी होगा?' |

इतना ही नहीं, स्पर्धा की इस पूरी प्रक्रिया को ध्यान से देखने पर मालूम होता है कि असलियत तो इससे भी अधिक चौंकाने वाली है |"100 शहरों का चयन स्पर्धा के आधार पर हुआ" यह कहना ही गलत है; शहरों के नाम तय हो जाने तक तो कोई स्पर्धा हुई ही नहीं है, अफसरों व तकनीशियनों के बीच की स्पर्धा से केवल यह तय हो रहा है कि "किस चयनित शहर को योजना की किस किश्त में लाभ मिलेगा?" | 

आइये इस चयन प्रक्रिया को पूरा समझकर गड़बड़ियों को भी समझें | चयन प्रक्रिया के तीन चरण रहे | पहले चरण में तो राज्यवार शहरों की संख्या का कोटा तय कर लिया गया | इसके लिए अजीब-सा फार्मूला बनाया गया | वेबसाइट पर बताया गया है कि प्रत्येक राज्य की कुल शहरी आबादी और राज्य में स्थित शहरों की कुल संख्या को इसमें बराबरी का महत्व दिया गया है | 'अमृत योजना' के लिए भी यही फार्मूला अपनाया गया है | अब सोचिये कि इन दोनों आंकड़ों का उपरोक्त वाजिब उद्देश्यों से कोई सीधा सम्बन्ध है क्या ? 

किसी राज्य में ज्यादा शहरी आबादी है और ज्यादा शहर है; तो इससे केवल यही साबित होता है कि उस राज्य में अधिक शहरीकरण हो चुका है | यदि इस फार्मूले का कुछ औचित्य है भी तो इसे तो उलटकर अपनाना चाहिए था; यानि जिन राज्यों में कम शहरीकरण हुआ है उन्हें ज्यादा स्मार्ट व ज्यादा 'अमृत' के शहर मिलना चाहिए थे | लेकिन स्पष्ट रूप से बताये बिना अधिक शहरीकरण वाले राज्यों को ही इन 'बेहतर शहरीकरण' की दोनों योजनाओं का अधिक लाभ दिया गया | इसीके चलते अगड़े राज्यों महाराष्ट्र, तमिलनाडु एवं गुजरात को उनकी आबादी के सापेक्ष में अधिक शहरों का कोटा मिल गया और दूसरी ओर पिछड़े और विकास हेतु अधिक तसरने वाले राज्यों, जैसे बिहार, उड़ीसा व पश्चिम बंगाल को अपेक्षाकृत कम संख्या का कोटा मिला | नए बने पिछड़े राज्यों जैसे झारखण्ड, उत्तराखंड व छत्तीसगढ़ के साथ भी खूब अन्याय हुआ | 

जहाँ सवा सात करोड़ की जनसंख्या वाले तमिलनाडु के 12 और 6 करोड़ की जनसंख्या वाले गुजरात के 6 शहरों को स्मार्ट बनने का तोहफा दे दिया गया; वहीं 11 करोड़ की आबादी वाले बिहार को मात्र 3 एवं सवा नौ करोड़ आबादी वाले पश्चिम बंगाल को मात्र 4 ही स्मार्ट शहर मिले | झारखण्ड व उत्तराखंड को मात्र 1-1 व छत्तीसगढ़ व उड़ीसा को मात्र 2-2 शहरो का ही कोटा मिला | यानि पिछड़े राज्यों को जहाँ अधिक स्थान मिलना चाहिए थे, उन्हें उल्टा उनके हक़ से भी कम मिले, फिर भी इन राज्यों की सभी पार्टियां व सभी नेता बिलकुल चुप रहे | क्या सभी विकास के बजाय भावनात्मक मुद्दो की ही तलाश में रहते हैं ?  

और भी विचित्र बात यह है कि इन 98 शहरों कि सूची में बंगलुरु, कोलकाता, हावड़ा, पटना, धनबाद, शिमला, त्रिवेन्द्रम, विजयवाड़ा, गया, ईटानगर व गंगटोक जैसे शहर भी शामिल नहीं है (इसके बावजूद कि कंसेप्ट पेपर में कहा गया था कि सभी राज्यों की राजधानियाँ तो इस योजना में शामिल होंगी)| जबकि कई अल्प-संभावनाओं वाले शहरों जैसे डिंडीगुल, तिरुनेलवेली, तंजावुर, नामची, रामपुर और दाहोद को चुन लिया गय | समझ में नहीं आता कि इतने अजीब चयन पर क्यों किसी ने अबतक सवाल भी नहीं किया ? खैर, इस प्रक्रिया में गड़बड़ियों की बातें तो आगे भी कई हैं | इसलिए बेहतर हैं कि हम अगले दो चरणों में हुई गड़बड़ियों की बात अगले लेख में करें | 

* हरिप्रकाश गर्ग 'विसंत'

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