नींद में बड़बड़ाते है आप तो हो सकते है इस स्लीपिंग डिसऑर्डर का शिकार, जाने इलाज
नींद में बड़बड़ाते है आप तो हो सकते है इस स्लीपिंग डिसऑर्डर का शिकार, जाने इलाज
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क्या आप भी नीद में बात करते या बड़बड़ाते है अगर हाँ तो ये खबर पढ़ ले , जी हाँ अक्सर कुछ लोग दिन भर की थकान के बाद जब रात में सोते है तो बड़बड़ाते है जो की आम बात है लेकिन अगर ये चीखने चिल्लाने में बदल जाए तो आपको डॉक्टर से परामर्श लेना आवश्यक हो जाता है  नींद में बोलने की समस्या एक प्रकार का पैरासोमनिया कहलाता है। इसका मतलब है कि सोते समय अस्वाभाविक व्यवहार करना। जब यह हद से ज्यादा बढ़ जाए, तो इसका इलाज करवाना जरूरी है। नींद में बोलने या बड़बड़ाने की समस्या वयस्कों से कहीं ज्यादा किशोर से लेकर छोटे बच्चों में होती है। बच्चे कल्पना की दुनिया में खोए रहते हैं और नींद के जरिए ये सारी बातें, उनकी कल्पनाएं व्यक्त होती हैं। कुछ लोगों में यह अनुवाशिंक कारणों से भी होता है। एक शोध के अनुसार, 10 में से 1 बच्चा सप्ताह में कई बार नींद में बात करता है।

नींद में बोलना और बड़बड़ करने को पैरासोम्निया कहा जाता है। यह कोई बीमारी नहीं है, लेकिन इस व्यवहार से दूसरों को समस्या हो सकती है। कुछ लोग नींद में 30 सेकेंड तक बोलते हैं, तो कुछ इससे भी ज्यादा। जब कोई व्यक्ति सोते समय बुरा सपना देखता है, तो भी यह समस्या हो सकती है। कई बार आप जो चीजें दिन भर सोचते हैं, वही रात में भी सपनों में आती हैं, जिसके कारण आप बड़बड़ाने लगते हैं।नींद में बात करना किसी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाता है, लेकिन ये नींद विकार या स्वास्थ्य की बीमारी के ओर संकेत करते हैं। यदि आप नींद में बोलते या बड़बड़ाते हैं (sleep talking) या फिर सवाल-जवाब करते हैं, तो यह सामान्य है। इसे आरईएम स्लीप बिहेवियर डिसऑर्डर (sleep disorder) भी कहा जाता है। जब आप नींद में भयावह हरकतें करते हैं जैसे चीखना, चिल्लाना, तो सावधान हो जाएं। यह डिमेंशिया, पार्किंसन जैसी बीमारियों के लक्षण भी हो सकते हैं। आरईएम नींद उस नींद को कहते हैं, जिसमें सोता हुआ व्यक्ति सपने देखता है। कई बार मानसिक तनाव, स्वास्थ्य समस्याएं, मेडिकेशन के साइड इफेक्ट्स से भी यह समस्या हो सकती है।

नींद में बोलने की आदत लगातार बनी हुई है, तो इसे नजरअंदाज ना करें। किसी अच्छे साइकियाट्रिस्ट से तुरंत मिलें। हालांकि, नींद में बोलने की आदत का कोई इलाज नहीं है और ना ही कोई दवा है, तो बेहतर होगा कि किसी साइकियाट्रिस्ट से ही इस समस्या का समाधान तलाशें। योग और मेडिटेशन करें। तनाव से खुद को दूर रखें। स्लीप डायरी बनाएं। अपने सोने-जागने की आदतों जैसे कब सोते हैं, कब उठते हैं, रात में बीच में कब उठते हैं, कब-कब नींद में बोलते हैं, इसके बारे में घर के सदस्यों से पूछें, क्या बोलते हैं। इससे आप अपनी इस हालत को डॉक्टर से अच्छी तरह से बता पाएंगे।

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