सीता अष्टमी पर जरूर जानिए सीता माता के जन्म की पौराणिक कथा
सीता अष्टमी पर जरूर जानिए सीता माता के जन्म की पौराणिक कथा
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आप सभी को बता दें कि आज सीता अष्टमी है. ऐसे में आज व्रत रखने से दांपत्य जीवन सुखद हो जाता है. कहते हैं पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार फाल्गुन कृष्ण अष्टमी तिथि को माता सीता धरती पर अवतरित हुईं थी और इस‍ कारण इस दिन सीता अष्टमी का पर्व मनाया जाता है. ऐसे में इस पर्व को जानकी जयंती के नाम से भी जाना जाता है जो इस साल 25 और 26 फरवरी को मनाई गई है. आइए जानते हैं आज सीता अष्टमी की पौराणिक मान्यता और कथा.

सीता अष्टमी व्रत कथा - धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जानकी जयंती का पर्व मनाया जाता है. माना जाता है कि फाल्गुन माह के पुष्य नक्षत्र में जब राजा जनक संतान प्राप्ति की इच्छा से यज्ञ के लिए हल से भूमि तैयार कर रहे थे, उसी समय यज्ञ भूमि से एक बालिका प्रकट हुई. उस बालिका का नाम सीता रखा गया. इस तिथि को जानकी जयंती या सीता अष्टमी के नाम से जाना जाता है. इस दिन व्रत रखने से माता सीता की तरह धैर्य की प्राप्ति होती है.

सीता अष्टमी व्रत पौराणिक मान्यता - एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार मारवाड़ क्षेत्र में देवदत्त नामक विद्वान ब्राह्मण रहते थे. उनकी पत्नी शोभना काफी रुपवति थी. एक बार ब्राह्मण भिक्षाटन के लिए किसी दूसरे गांव गए थे. इस बीच ब्राह्मणी कुसंगत में फंसकर गलत रास्तों पर चलने लगी. पूरे गांव में उसकी निंदा होने लगी तो उसने पूरे गांव को जलवा दिया. पति का त्याग करने के कारण मृत्यु के बाद उसका जन्म चांडाल के घर में हुअा. गांव जलाने के कारण उसे कुष्ठ रोग हो गया और गलत कर्मों के कारण वह अंधी हो गई. इसके बाद वह एक स्थान से दूसरे स्थान भटकने लगी. भटकते हुए वह कौशलपुरी पहुंची. उस दिन सभी पापों का नाश करने वाली फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि थी.

भूख से परेशान होकर उसने लोगों से भोजन की मांग की, लेकिन लोगों ने उसे यह कहते हुए भोजन देने से इंकार कर दिया कि, आज जानकी जयंती है, और आज भोजन में अन्न देने वाले को पाप का भागी बनना पड़ता है. लोगों ने उसे दूसरे दिन प्रसाद देने की बात कही. इधर, भूख प्यास से उसकी मौत हो गई, लेकिन अनजाने में उससे जानकी जयंती का व्रत पूरा हो गया और उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई. इसके बाद उसका पुनर्जन्म हुअा और वह महाराजा जयसिंह की महारानी काम कला के नाम से विख्यात हुई. उसने अपने राज्य में माता सीता और श्री राम के कई मंदिर भी बनवाए. मान्यता है कि सीता अष्टमी पर माता सीता का पूजन करने वाले को सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है.

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