क्या मात्र स्नान से पापों का शमन संभव है ?
क्या मात्र स्नान से पापों का शमन संभव है ?
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अभी दो दिन पूर्व 21 मई को उज्जैन में तीसरे शाही स्नान के साथ सिंहस्थ का समापन हो गया.एक माह तक चले इस आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मेले में करोड़ों श्रद्धालुओं ने उज्जैन के विभिन्न घाटों पर शिप्रा- नर्मदा के मिश्रित जल में आस्था की डूबकी लगा कर भूतभावन बाबा महाकाल के दर्शन करके खुद को अपने पापों से मुक्ति की घोषणा भी कर दी. मेरी अल्प बुद्द्धि में यहाँ एक सवाल यह उठ रहा है कि जो अशक्त,

लेकिन आस्थावान. विवश लेकिन धर्मालु और सामान्य गृह्स्थजन किन्ही कारणों से उज्जैन सिंहस्थ अवधि में शिप्रा स्नान नहीं कर सके लेकिन इन्होंने मानव होने के नाते पिछले सिंहस्थ से अब तक न केवल सद्कार्यों को बढ़ावा दिया बल्कि सत्य वचन के साथ निस्वार्थ भाव से यथा संभव दीन दुखियों की सेवा भी की और मौन रहकर अध्यात्म के पथ पर चलकर ईश्वर आराधना में लगे रहे तो क्या मात्र सिंहस्थ में स्नान नहीं करने से इनके पापों का शमन नही होगा ? क्या इन्हें पुण्य संचय का लाभ नहीं मिलेगा ?

वैसे भी कहा गया है कि मात्र तन की शुद्धि से पापों का क्षय नहीं होता है. तन के साथ मन की शुद्धि भी जरुरी है.साथ ही वचन शुद्धि भी होना चाहिए. जैन मुनि वृन्दों की आहार चर्या के समय श्रावक को इसकी घोषणा करनी पड़ती है, तभी वीतरागी संत आहार ग्रहण करते हैं. ऐसी दशा में यह प्रश्न अनुत्तरित ही रहेगा की जिन लोगों ने सिंहस्थ को एक पर्यटन के रूप में लेकर शिप्रा में स्नान किया वे पाप मुक्त हो गए और दूसरा यह कि क्या मात्र स्नान से पापों का शमन होता है?

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