मानव जीवन से जुडी हर एक परम्परा और नियम का कुछ न कुछ राज तो अवश्य होता है . इस संसार सागर में हर किसी के दो पहलू अवश्य होते है ,जैसे जन्म -मृत्यु ,सुख -दुःख,हार-जीत ,सफलता -विफलता ,उसी तरह बोलना व मौन रहना है. पर यह बोलना हर एक जीव में नहीं रहता .पशु-पक्षियों में सबसे अधिक देखी जाने वाली भिन्न्ता वाणी की ही होती है.मनुष्य स्पष्ट और बोधगम्य भाषा के माध्यम से अपनी वाणी प्रकट कर सकता है,जबकि पशु-पक्षियों के लिए यह सुविधा नहीं है.उनके पास अपनी एक जन्मजात बोली है,जिससे वे अपना काम चलाते हैं.
हम सभी मानव के पास बहुत सी भाषाओं के माध्यम से बोलने के लिए बहुत-सी बातें होती हैं, पर क्या हमने कभी यह विचार किया कि इतनी बातों को बोलकर हम इनके बदले अपने लिए,अपने जीवन के लिए क्या प्राप्त करते हैं?
व्यक्ति अपने जीवन में बहुत सी बातें करता है .पर उन बातों का क्या सार है उनकी क्या महत्वता है ,कई बार तो लोग लम्बे समय तक वार्तालाप करते रहते पर उस वार्तालाप में वोले गए एक भी शब्द सार्थक नहीं होते है .फिर ऐसी बातों का क्या महत्त्व इससे तो अच्छा है मोन रहना . मोन रहने में तो काम से काम गलत शब्द नही निकलेगें .किसी के बारे में गलत तो न बोलेंगें .
आज इस समाज में लोगों में भाषण देने की होड़ लगी है. असंतुलित, कुंठित और प्रदूषित विचार भावनाएं हमें कुछ न कुछ बोलने को उकसाती हैं. इस तरह आवेश में बोलते रहने से सभ्य-असभ्य, श्लील-अश्लील का अंतर मिट चुका है। मनुष्य की वाणी का स्तर गिर रहा है.उससे अच्छी बातें कम और बुरी बातें ज्यादा निकल रही हैं. आज समाज में असभ्यता, अश्लीलता और असंवेदनशीलता बढ़ गई है.
यदि व्यक्ति अपने जीवन में थोड़ी-सी संवेदना रखें तो भीतर एक बात प्रकट होती है कि कई बार कुछ ऐसी परिस्थितियों में फंसने पर मौन धारण करना अच्छा सावित होता है .यह मौन शब्द मानव के मन से ही निकला है मन यानी अंत:करण की ओर उन्मुख होने की राह.लंबे समय तक मौन होकर व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का समुचित निरूपण कर सकता है.आपने बहुत से ऐसे व्यक्ति भी देखें होंगें जो लम्बे समय तक मोन व्रत रखते है इससे उनके जीवन में संयम ,पवित्रता ,एकाग्रता ,शांति ,आदि प्राप्त होते है .