शूर्पणखा का नाम सुनते ही लोगों के मन में एक राक्षसी की छवि उभर आती है। रामायण में उसे रावण की बहन के रूप में दिखाया गया है, जिसने राम और लक्ष्मण से मिलने के बाद घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू कर दी, जो अंततः सीता के अपहरण और रावण के विनाश की ओर ले गई। लेकिन शूर्पणखा की कहानी इससे कहीं अधिक गहरी और दिलचस्प है।
जब राम, सीता, और लक्ष्मण वनवास के दौरान जंगल में रह रहे थे, तब शूर्पणखा की नजर राम पर पड़ी और वह उन पर मोहित हो गई। राम को पाने की चाहत में उसने उनसे प्रणय निवेदन किया, लेकिन जब राम ने उसे अस्वीकार कर दिया, तो उसने लक्ष्मण से प्रस्ताव रखा। लक्ष्मण ने उसकी इस बात को ठुकरा दिया और अपमानित करते हुए उसकी नाक काट दी। इससे क्रोधित होकर शूर्पणखा ने अपने भाई रावण को इसकी सूचना दी, जिससे रावण ने सीता का अपहरण करने की योजना बनाई।
कहानी के अनुसार, शूर्पणखा के मन में रावण के प्रति भी गुस्सा था। उसने अपने पति विद्युतजिव्ह से प्रेम विवाह किया था, जो कालकेय नामक राजा का सेनापति था। जब रावण ने पूरी दुनिया को जीतने का अभियान चलाया, तब उसने युद्ध में विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। जब शूर्पणखा को इस बात का पता चला, तो उसे गहरा दुख हुआ और उसने रावण को श्राप दिया कि उसका सर्वनाश उसी के कारण होगा। इस बदले की भावना ने उसे रामायण की महत्वपूर्ण घटनाओं की ओर धकेल दिया।
रामायण के समय में शूर्पणखा को एक राक्षसी के रूप में जाना जाता था, लेकिन उससे पहले वह इंद्र के दरबार की एक अप्सरा थी, जिसका नाम नयनतारा था। नयनतारा अपने सुंदर नृत्य और आंखों की आकर्षक भंगिमाओं से इंद्र को मोहित कर चुकी थी। एक बार इंद्र ने ऋषि वज्रा की तपस्या भंग करने के लिए नयनतारा को धरती पर भेजा। नयनतारा की सुंदरता के कारण ऋषि की तपस्या भंग हो गई, जिससे क्रोधित होकर उन्होंने उसे राक्षसी बनने का श्राप दे दिया।
श्राप के बाद, नयनतारा ने ऋषि से मुक्ति का उपाय पूछा। ऋषि ने कहा कि सतयुग में राम से मिलकर, जब वह भगवान की मदद करेगी, तभी उसे इस श्राप से मुक्ति मिलेगी। इस प्रकार, नयनतारा का पुनर्जन्म शूर्पणखा के रूप में हुआ, और उसने रावण को युद्ध के लिए उकसाया, जिससे भगवान राम ने रावण का नाश किया।
श्राप से मुक्ति पाने के लिए शूर्पणखा ने पुष्कर नदी के तट पर दस हजार वर्षों तक शिवजी की आराधना की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे वरदान दिया। इस वरदान के अनुसार, 28वें द्वापर युग में, जब श्रीराम ने कृष्णावतार लिया, तब उन्होंने कुब्जा के रूप में शूर्पणखा से विवाह किया और उसके कूबड़ को ठीक कर दिया। इस प्रकार, शूर्पणखा को उसका पुराना नयनतारा वाला सुंदर रूप वापस मिल गया। शूर्पणखा की कहानी एक साधारण राक्षसी की कहानी नहीं है। यह कहानी प्रेम, प्रतिशोध, तपस्या, और मुक्ति की है। शूर्पणखा का किरदार हमें यह सिखाता है कि हर इंसान के जीवन में एक गहरी कहानी छिपी होती है, जिसे जानने के बाद ही हम उसे सही तरीके से समझ सकते हैं।
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