श्रीकृष्ण देते हैं जीवन दर्शन का सार
श्रीकृष्ण देते हैं जीवन दर्शन का सार
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प्रति वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आने के पहले ही बाजार, कृष्ण मंदिर सभी जगह उल्लास का माहौल देखने में आता है। जी हां, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पहले से ही श्रद्धालु भगवान श्री कृष्ण के जन्म का उल्लास मनाने लगते हैं। यही नहीं सारा वातावरण नंद के आंनद भयो के जयकारों से गूंज उठाता है और श्रीकृष्ण की भक्ति में रम जाता है। मगर श्रीकृष्ण की भक्ति में रमने वाले श्रद्धालु इस पर्व में छुपा संदेश भूल जाते हैं। 

दरअसल योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण जी श्रद्धालुओं को कई गहरे संदेश देते हैं। भगवान श्रीकृष्ण सभी कलाओं में निपुण थे। उन्होंने सभी को जीवन मे पूर्णता का संदेश दिया था। यही नहीं भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद गीता में वेदों और जीवन का सार समाहित किया है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान ने कहा है कि व्यक्ति को कर्म करना चाहिए फल की इच्छा नहीं करना चाहिए। अर्थात् व्यक्ति जब कर्म करता है तो स्वतः ही उसका कर्मफल उसे प्राप्त होता है।

उन्होंने कहा है कि उसे कर्म तो करना ही होगा। उससे वह पीछे नहीं हट सकता। जैसे यदि आप किसी दुविधा में उलझ गए हैं और आप कोई निर्णय नहीं ले पा रहे हैं तो भी आपको निर्णय तो लेना ही होगा। इससे आप बच नहीं सकते या तो आप उस ओर जाऐंगे या फिर आप उस ओर नहीं जाऐंगे। मगर इस तरह से भी आप निर्णय जरूर लेंगे।

जब आप अपने किसी कार्य को ईश्वर को समर्पित करते हैं तो उसमें सफलता मिलती है क्योंकि उसके प्रति आप में विश्वास का भाव आता है और उस कार्य को आप पूर्णता से करते हैं ऐसे में वह सफल होता है। उस कार्य के प्रति कुछ न करने का भाव आपमें बड़प्पन लाता है ऐसे में आप अकर्ता के भाव को आत्मसात करते हैं। यही नहीं भगवान जिस तरह से मुरली बजाते हैं वह जीवन में संगीत और आनंद घोलने का प्रतीक है।

जीवन को आनंद के साथ प्रेम और माधुर्य के बीच जीना ही कला है। भगवान श्रीकृष्ण की तरह यदि हम जीवन का आनंद लेते हुए अपना जीवन निर्वाह करते हैं तो किसी भी काम में आने वाली परेशानी हमें बड़ी नहीं लगती परेशानी से ज़्यादा हमें उस कार्य में मिलने वाले आनंद का सुख अनुभव होता है। भगवान को माखन अतिप्रिय था। यह माखन दही को मथने के बाद निकलता है और इसे अंग्रेजी में क्रीम कहा जाता है।

दरअसल जीवन में भी हमें हर बात का मंथन कर उसके सभी पक्षों और पहलूओं पर विचार करना चाहिए। साथ ही जो बात हमारे लिए श्रेष्ठ है उसे हमें आत्मसात करना चाहिए। जिस तरह से गोपियां भगवान श्री कृष्ण के प्रेम में व्याकुल हो जाती थीं उसी तरह से हमें भी प्रेम करने की शिक्षा मिलती है। प्रेम केवल देने का नाम है प्रेम में प्रतिफल की चाहत नहीं होती। जब हम देने और त्यागने की भावना अपनाते हैं तो परिस्थितियां स्वतः ही ठीक होने लगती हैं साथ ही जिन वस्तुओं को हम दूर करते हैं वे ही हमारे पास आने लगती हैं। 

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