गुजरात की शव पेटी से उठा कांग्रेस का मुर्दा
गुजरात की शव पेटी से उठा कांग्रेस का मुर्दा
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मुंबई : गुजरात में हुए पंचायत चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को ग्रामीण क्षेत्रों में मिली हार के बाद अब भारतीय जनता पार्टी के प्रदर्शन की समीक्षा की जा रही है। पहले गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने ग्रामीण स्तर पर इसे भाजपा के लिए अच्छा नहीं बताया था तो अब शिवसेना ने इस पर भाजपा की हार से अपने सहयोगी दल को समीक्षा करने और आत्मविंचन करने की सलाह देती है। दरअसल ऐसा लगता है कि कांग्रेस का मुर्दा मोदी-शाह के गुजरात की शवपेटी से उठ गया है।

यह परिदृश्य देश के लिए अच्छा नहीं है। कांग्रेसमुक्त भारत का नारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिया गया। मगर गुजरात में भाजपा की प्राथमिक स्तर के चुनाव में जो स्थिति हुई यह भाजपा के लिए आत्ममंथन करने की बात है। बिहार की हार के बाद गुजरात के चुनाव भाजपा के लिए मायने रख रहे थे।

उल्लेखनीय है कि यहां पर पटेल आरक्षण आंदोलन के चलते भाजपा को अपने एक बड़े वोट बैंक की उपेक्षा का सामना करना पड़ा। शिवसेना द्वारा कहा गया कि नगर पालिका में भाजपा जीती लेकिन जिला पंचायतों में कांग्रेस ने बढ़त बनाई, शिवसेना ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि ये नतीजे एक बड़ा संकेत हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गुजरात भाजपा का गढ़ नहीं रहा या फिर इसमें सेंध लग गई इस पर विचार किया जाना जरूरी है।

दरअसल शिवसेना द्वारा सामना में लिखी संपादकीय में कहा गया है कि हार्दिक पटेल के पाटीदार आंदालन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लगातार गिरती लोकप्रियता के परिणामस्वरूप गुजरात की जिला परिषद में कांग्रेस के हाथ मजबूत थे। बिहार में कांग्रेस को संजीवनी मिल गई यह बात तो ठीक है मगर गुजरात राज्य में कांग्रेस को जीवनदान मिलना चिंता की बात है। शिवसेना की संपादकीय में लिखा गया है कि गुजरात में हारने के बाद भी कांग्रेस की जीत हुई। यह भाजपा के लिए एक गंभीर बात है। 

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