शिवराज सरकार ने प्रधानमंत्री से पौधरोपण के लिए गैर वन भूमि मांगी
शिवराज सरकार ने प्रधानमंत्री से पौधरोपण के लिए गैर वन भूमि मांगी
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भोपाल : मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्राइवेट सेक्टर और प्रदेश की विकास परियोजनाओं को वनो की जमीन देने के विषय में प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी को एक पत्र लिखा है. मुख्यमंत्री ने कहा है कि उद्योगों के लिए वन भूमि का डायवर्सन होता है तो यह नियम है कि वैकल्पिक पौधे लगाने के लिए उतनी ही गैर वन भूमि या राजस्व भूमि देनी होगी। मध्यप्रदेश में गैर वन भूमि एक सीमित दायरे में है, इसलिए हमको समस्याओ का सामना करते हुए, उनका सामना करना पड़ रहा है। और साथ ही साथ विकास परियोजनाओं की लागत कीमते भी बढ़ जाती है। देखा जाये तो, केंद्र की योजनाओं में नियम है कि वन भूमि का डायवर्सन होने पर बिगड़े वनों में ही पौधे लगाने (वनीकरण) का काम करा लिया जाता है। इसी प्रकार की राहत प्रदेश को भी मिलना चाहिए।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपने पत्र में लिखा कि केंद्र सरकार की नीति में इसका प्रावधान है। जहां वन क्षेत्र राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 33% या इससे अधिक हैं, ऐसे राज्यों को बिगड़े वनों में वैकल्पिक पौधे लगाने की सुविधा दी गई है, मप्र में यह 30.72% है। इसकी वजह से ही यहां पर यह सुविधा उपलब्ध नहीं हो पा रही है। फिलहाल में मध्यप्रदेश में लगभग 36 लाख हैक्टेयर ख़राब वन हैं, जिनको वैकल्पिक पौधे लगाने की सुविधा मिले तो गैर जंगल भूमि को नहीं जुटाना पड़ेगा। वन विभाग के अधिकारीयों के कहे अनुसार केंद्र सरकार यदि मध्यप्रदेश सरकार की बात को सहमति देती है तो यह हजार हेक्टेयर से भी अधिक वन भूमि का डायवर्सन तैयार हो जायेगा। गौरतलब है की अभी तक इतनी जमीन वाले केस अभी पेंडिंग में है, पूरी जमीन इससे कही गुना ज्यादा है।

सरकार की परेशानिया यह है की डायवर्सन के बाद जो गैर वन भूमि है वो एक साथ आसानी से मिलना मुश्किल है,इसलिए छोटे-छोटे टुकड़ो में भूमि की नम्बरिंग करना पड़ता है , साथ ही लागत बाद जाती है।जिसकी कीमत को पर्यावरण ही चूका सकता है। डॉक्टर फैयाज अहमद खुदसर का कहना है की मुख्यमंत्री यदि मोदी से गिर के शेर मांगते तो बेहतर होता। उन्होंने जो राहत मांगी है, उससे वनों को नुकसान होगा। यह पहल अव्यवहारिक व निगेटिव है। मुख्यमंत्री को दोबारा विचार करना चाहिए। साथ ही संतोष भारती (सामाजिक कार्यकर्त्ता) का कहना है की सरकार इस तरह की राहत लेकर प्रकृति से खिलवाड़ करेगी। यह सिर्फ निजी क्षेत्र को उपकृत करने के लिए मांगी जा रही रियायत है, जिसकी कीमत पर्यावरण से चुकेगी।

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