शिप्रा भगवान विष्णु के रक्त से उत्पन्न हुई, ये ग्रन्थ कहते  है ............
शिप्रा भगवान विष्णु के रक्त से उत्पन्न हुई, ये ग्रन्थ कहते है ............
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मध्यप्रदेश की पावन नगरी उज्जैन की शिप्रा नदी,जहां इस वर्ष सिंहस्थ कुंभ का आयोजन किया जा रहा है. कुंभ विश्व का सबसे बड़ा और महत्त्व रखने वाला मेला (महापर्व) है.एक किंवदंती के अनुसार  बताया जाता है की शिप्रा नदी विष्णु जी के रक्त से उत्पन्न हुई थी.ब्रह्म पुराण में भी शिप्रा नदी के बारे वर्णन  मिलता है . संस्कृत के प्रचंड विद्वान महाकवि  कालिदास ने अपने काव्य ग्रंथ 'मेघदूत' में शिप्रा के वारे में वर्णन किया है , जिसमें इसे अवंति राज्य की प्रधान नदी कहा गया है.

भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन, शिप्रा के तट पर बसी है स्कंद पुराण में शिप्रा नदी की महिमा बताई गई है `और इसका उद्गम कैसे हुआ ये भी वर्णित है .पुराण के अनुसार यह नदी अपने उद्गम स्थल से बहते हुए चंबल नदी से मिल जाती है.प्राचीन मान्यता है कि प्राचीन समय में इसके तेज बहाव के कारण ही इसका नाम शिप्रा प्रचलित हुआ.

इस शिप्रा नदी का उद्गम  मध्यप्रदेश के महू छावनी से लगभग 17 किलोमीटर दूर जानापाव की पहाडिय़ों से हुआ है. यह स्थान भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम का जन्म स्थान भी माना गया है.

शिप्रा नदी की कैसे हुई उत्पत्ति इसका उल्लेख हिन्दू धर्म ग्रंथों में विशेष रूप से मिलता है -

इन हिन्दू धर्म ग्रंथों में बताया जाता है की बहुत समय  पहले भगवान शिव ने ब्रह्म कपाल लेकर, भगवान विष्णु पास  भिक्षा मांगने पहुंचे. तब भगवान विष्णु ने उन्हें अंगुली दिखाते हुए भिक्षा प्रदान की.इस अशिष्टता से भगवान भोलेनाथ क्रोधित हो गए और उन्होंने तुरंत अपने त्रिशूल से विष्णु जी की उस अंगुली पर प्रहार कर दिया जिस उंगली को  उन्होंने दिखाया था.अंगुली से रक्त की धारा बहने लगी जो विष्णुलोक से धरती पर आ पहुंची. और इस तरह यह रक्त की यह धार, शिप्रा नदी में परिवर्तित हो गई.

इस शिप्रा नदी के किनारे के सभी घाटों का भी पौराणिक महत्व है. इन सभी घाटों में एक रामघाट मुख्य घाट माना जाता है. कहते हैं भगवान श्रीराम ने पिता दशरथ का श्राद्धकर्म और तर्पण इसी घाट पर किया था. इसके अलावा नृसिंह घाट, गंगा घाट, पिशाचमोचन तीर्थ, गंधर्व तीर्थ भी प्रमुख घाट हैं.

ग्रंथों में वर्णित है की  शिप्रा नदी के किनारे स्थित सांदीपनी आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और उनके प्रिय मित्र सुदामा ने विद्या अध्ययन किया था. हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित है कि राजा भर्तृहरि और गुरु गोरखनाथ ने भी इस पवित्र नदी के तट पर तपस्या से सिद्धि प्राप्त की.माँ शिप्रा और यह स्थान उज्जैन  बहुत ही पावन और एक बहुत ही बड़ा धार्मिक स्थल है. इस स्थल में जाने से मानव की  कामना पूर्ण  होती है और उसका जीवन शांति  और सुखद रूप से व्यतीत होता है .

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