पंजाब की बहुसंख्यक मुस्लिम जनसंख्या वाले जिले मालेरकोटला में मेडिकल कॉलेज खुल जाने से क्षेत्र का कायाकल्प हो सकता है. यह क्षेत्र निरक्षरता का शिकार है और लगभग 31 प्रतिशत जनसंख्या अशिक्षित है.ऐसे में मालेरकोटला में मेडिकल कॉलेज का ओपन होना विशेष महत्व रखता है. क्योंकि मालेरकोटला के जनता ने बंटवारे के समय देश में ही बसने की ठानी थी. यह उन लोगों के लिए स्वतंत्रता के 73 वर्ष के बाद एक सौगात होगी. जिन्होंने भारत पाक बंटवारे के बाद मुस्लिम होते हुए भी पाक जाने से मना कर दिया था.
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विदित हो कि मालवा में 6 मेडिकल कॉलेज के अलावा बाबा फरीद मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी है, और मालेरकोटला में विश्वविघालय खुलने से सातवां मेडिकल कॉलेज मालवा में रेडी हो जाएगा. जबकि दोआबा में केवल 1 मेडिकल कॉलेज जालंधर में पिम्स है. वही, होशियारपुर में केंद्रीय राज्यमंत्री सोमप्रकाश ने एम्स को पास करवा लिया है. जिसके बाद दोआबा में दो मेडिकल कॉलेज हो जाएंगे.
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बता दे कि 1947 में बंटवारे के समय जब बॉर्डर के दोनों ओर का पंजाब हिंसा की आग में जल रहा था और कत्ल-ए-आम का मंजर था. उस वक्त एक क्षेत्र ऐसा था, जो हिंसा के साए से दूर था. क्योंकि यहां हिंदू और मुस्लिम समुदाय में बहुत प्यार है. इसलिए स्वतंत्रता के दौरान हुए खूनी संघर्ष का मालेरकोटला पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. हिंदू स्वंय मुस्लिम समुदाय के लोगों के आगे वॉल बनकर खड़े हो गए थे. जोकि की एक ऐसी घटना है, जिसमें हिंदू और मुस्लिम की एकता नजर आती है. हर किसी के लिए यह घटना एकता का प्रति है.
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