हिदू धर्म में पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रत्येक श्राद्धपक्ष या पितृपक्ष के दौरान पिंडदान और तर्पण करते हैं। जी दरअसल परिवार पर पितरों का आशीर्वाद बना रहे इसके लिए मुख्य रूप से सोलह दिनों के पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म किया जाता है और यह बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। कहते हैं पितरों की शांति के लिए श्राद्ध कर्म करना बहुत जरूरी होता है लेकिन अगर ऐसा न किया जाए तो पितृ नाराज हो जाते हैं और घर में सुख-शांति नहीं रहती है। अब हम आपको बताते हैं कि श्राद्ध कर्म क्यों आवश्यक है?
श्राद्ध कर्म क्यों आवश्यक है?- कहा जाता है श्राद्ध पितृ ऋण से मुक्ति का माध्यम है। इसी के साथ श्राद्ध पितरों की संतुष्टि के लिए आवश्यक है। वहीं महर्षि सुमन्तु के अनुसार श्राद्ध करने से श्राद्धकर्ता का कल्याण होता है। कहा जाता है मार्कंडेय पुराण में बताया गया है कि श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितर श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विघ्या, सभी प्रकार के सुख और मरणोपरांत स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते हैं। वहीं अत्री संहिता के अनुसार श्राद्धकर्ता परमगति को प्राप्त होता है। इसी के साथ कहा जाता है यदि श्राद्ध नहीं किया जाता है तो पितरों की आत्मा बहुत दुखी होती है।
ब्रह्मपुराण के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करता है तो उसके पितर श्राद्ध न करने वाले व्यक्ति को शाप देते हैं और उसका रक्त चूसते हैं। केवल यही नहीं बल्कि उसी शाप के कारण वह वंशहीन हो जाता है अर्थात वह पुत्र रहित हो जाता है। इसके अलावा, ऐसे लोगों को जीवनभर कष्ट झेलना पड़ता है। इनके घर में बीमारी बनी रहती है और श्राद्ध-कर्म शास्त्रोक्त विधि से करना बहुत जरूरी माना जाता है। पितृ कार्य कार्तिक या चैत्र मास मे भी किया जा सकता है।
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