यहाँ श्मशान में जलती चिताओं के सामने नाचती है तवायफ, अनोखी है परम्परा
यहाँ श्मशान में जलती चिताओं के सामने नाचती है तवायफ, अनोखी है परम्परा
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आज तक आप सभी ने कभी सुना है कि जलती चिताओं के बीच जश्न का माहौल हो और नाचने वाली लड़कियां और नगरवधुएं जलती चिताओं के सामने नाचे। अगर नहीं सुना तो आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं। जी दरअसल यह एक परंपरा है जो चैत्र नवरात्र की सप्तमी तिथि पर वाराणसी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर निभाई जाती है। यहाँ का नजारा कुछ ऐसा ही रहता है। यहां तवायफ और नगरवधुएं जलती चिताओं के सामने नृत्य करती है और काशी विश्वनाथ स्वरूप बाबा मसान नाथ के दरबार में हाजरी लगाती हैं। यह परम्परा यहाँ अभी की नहीं बल्कि 378 साल पुरानी है जिसे आज भी जीवित रखा गया है। जी दरअसल कोरोना की महामारी के चलते बीते दो सालों से आंशिक रूप से होने वाली इस प्राचीन परंपरा का एक बार फिर से भव्य आयोजन किया गया।

इस समय चैत्र नवरात्र चल रहे हैं और इसी नवरात्र की सप्तमी तिथि के दिन यहां ना केवल वाराणसी, बल्कि आस-पास के कई जिलों की नगरवधुएं और नर्तिकाएं बाबा मसान नाथ के तीन दिवसीय वार्षिक श्रृंगार के अंतिम दिन नृत्यांजलि पेश करते नजर आई। यहाँ जलती चिताओं के साथ होने वाला उत्सव देर रात तक चलता रहा। जी दरअसल यहाँ देखने के लिए अद्भुत नजारा रहा क्योंकि एक तरफ अंतिम यात्रा पर शवों के आने का सिलसिला जारी रहा तो वहीं दूसरी ओर इंस्ट्रुमेंट्स और म्यूजिक सिस्टम पर तवायफों के कदम थिरकते रहते हैं। इस परंपरा के पीछे नगरवधुओं और बालिकाओं की एक खास मान्यता छिपी है।

कहते हैं कि बाबा मसान नाथ के दरबार में जलते शवों के समानांतर नृत्य करने से इस नारकीय जीवन के बाद मिलने वाला जुन्म सुधर जाता है। जी हाँ और कहा जाता है बाबा के दरबार में नृत्य करके वे कामना करती हैं कि उन्हें इस नारकीय जीवन से छुटकारा मिल जाए और उनका अगला जीवन बेहत हो। केवल यही नहीं बल्कि साल में एक दिन अपनी नृत्यांजलि के जरिए वह बाबा मसान के दरबार में अपनी आस्था प्रकट करती हैं और उनसे अगला जन्म संवारने की प्रार्थना करती हैं।

कहा जाता है 17वीं शताब्दी में काशी के राजा मानसिंह ने इस पौराणिक घाट पर श्मशान के स्वामी मसान नाथ के मंदिर का निर्माण किया था। जी हाँ और वह यहां एक संगीत कार्यक्रम कराना चाहते थे, हालाँकि जलती चिताओं के सामने संगीत और नृत्य की कला आखिर पेश कौन करता। ऐसे में संगीत कार्यक्रम में कोई कलाकार नहीं आया, और अंत में आईं सिर्फ तवायफें। जी हाँ और तवायफों ने गंगा किनारे स्थित मसान नाथ के दरबार में जलती चिताओं के साथ अपना नृत्य प्रस्तुत किया। उसी के बाद से इस प्राचीन परंपरा को हर साल जीवंत रखा जा रहा है।

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