गहरा है सेंगोल का इतिहास, जानिए माउंटबेटन और 14 अगस्त 1947 की रात की कहानी
गहरा है सेंगोल का इतिहास, जानिए माउंटबेटन और 14 अगस्त 1947 की रात की कहानी
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नई दिल्ली: पीएम नरेंद्र मोदी 28 मई को जब संसद के नए भवन का उद्घाटन करते है तो उस दिन एक ऐतिहासिक घटना को दोहराया जाने वाला है. ये घटना 75 वर्ष पुरानी है और इस घटना से 14 अगस्त 1947 की एक स्टोरी जुड़ी है. गृह मंत्री अमित शाह ने इस बारें में बोला है कि इस घटना का हमारी प्राचीन सभ्यता से ताल्लुक है. जिसके उपरांत गृह मंत्री ने सत्ता हस्तांतरण के लिए की अपनाई गई प्रक्रिया सेंगोल की स्टोरी बताई.  

अमित शाह ने बोला है कि पीएम मोदी ने आजादी के अमृत महोत्सव में पीएम नरेंद्र मोदी ने जो कुछ लक्ष्य तय किए थे, उसमें एक लक्ष्य हमारी ऐतिहासिक परंपराओं का सम्मान और उनका पुनर्जागरण भी रहा. सेंगोल से जुड़ी कहानी बताते हुए अमित शाह  ने बोला है  कि ये घटना आजादी के क्षण के साथ जुड़ा हुआ है. उन्होंने बोला है कि 14 अगस्त 1947 की रात को एक महत्वपूर्ण एतिहासिक घटना हुई थी. आज 75 वर्ष के उपरांत  भी देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है. सेंगोल हमारे इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई है. ये सेंगोल अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक भी कहा जाता है. 

गृह मंत्री ने कहा कि इस घटना का एतिहासिक महत्व जानने के उपरांत आप सबों को आश्चर्य होगा कि ये जानकारी देश के सामने अबतक किसलिए नहीं आई. इस घटना की जानकारी पीएम को मिली इस पर गहराई से विचार करने के बाद पीएम ने इसके कार्रवाई के आदेश दिये. जिसके उपरांत निर्णय लिया गया है कि इस गौरवमयी प्रसंग को देश के सामने रखना जरुरी है .  

अमित शाह ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा है कि 14 अगस्त 1947 की रात लगभग 10.45 मिनट पर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने तमिलनाडु से आए विद्वानों से इस सेंगोल को स्वीकार  कर लिया था. उन्होंने इसे अंग्रेजों से इंडिया को सत्ता प्राप्त करने के प्रतीक के रूप में पूर्ण विधि-विधान के साथ स्वीकार किया था. पंडित नेहरू ने 14 अगस्त 1947 की रात को कई नेताओं की मौजूदगी में इस सेंगोल को स्वीकार कर के सत्ता के हस्तांतरण की प्रक्रिया को पूरा कर लिया था. 

अमित शाह ने कहा कि 14 अगस्त को इस कार्यक्रम के दौरान राजेंद्र प्रसाद भी मौजूद थे जो देश के पहले राष्ट्रपति बने. अमित शाह ने कहा कि 47 में जब भारत को आजादी देने का फैसला हुआ तब लॉर्ड माउंटबेटन को इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए भारत का गवर्नर जनरल बनाकर भेजा गया. माउंटबेटन को भारतीय संस्कृति और रीति रिवाजों की जानकारी नहीं थी तो उन्होंने नेहरू से सवाल किया कि सत्ता का हस्तांतरण के लिए कौन सा समारोह का आयोजन किया जाना चाहिए. नेहरू भी कुछ संशय की स्थिति में थे. उन्होंने थोड़ा समय मांगा. जवाहर लाल नेहरू ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय संस्कृति के विद्वान सी राजगोपालचारी को बुलाया. 

सी राजगोपालचारी ने इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ने के लिए कई किताबें भी पढ़ ली है, ऐतिहासिक परंपराओं को जाना और समझा. उन्होंने कई साम्राज्यों का कहानी पढ़कर सेंगोल की सौंपने की प्रक्रिया की सूचना दे दी है. उन्होंने नेहरू से कहा कि इंडिया में सेंगोल के माध्यम से सत्ता के हस्तांतरण की प्रक्रिया को अधिकृत किया गया है. पंडित नेहरू ने तमिलनाडू से आए विद्वानों से सेंगोल को स्वीकार कर सत्ता के हस्तांतरण को पूर्ण कर दिया.  

अमित शाह ने कहा कि पंडित नेहरू ने इस अनुष्ठान को पूरा करने के लिए दक्षिण के मठाधिपति को भी बुला दिया है. क्योंकि वे भारत की आध्यात्मिक एकता और एकीकरण चाहते थे. गृह मंत्री ने बोला है कि सेंगोल शब्द तमिल शब्द सेम्मई से बन चुका है, इसका अर्थ नीति परायणता है. अमित शाह ने कहा कि ये सेंगोल विद्वानों द्वारा अभिमंत्रित है और गंगा जल से पवित्र किया गया है. इस पर पवित्र नंदी विराजमान हैं. सेंगोल की ये परंपरा चोल साम्राज्य के समय से 8वीं सदी से चली आ रही है. 

अमित शाह ने बोला है कि 1947 के बाद सेंगोल को भूला दिया गया. लेकिन 15 अगस्त 1978 को विद्वान चंद्रशेखर स्वामी सरस्वती ने अपने अनुनायी डॉ सुब्रमण्यम को इस बारे में बताया.  गृह मंत्री ने कहा कि मेरी गवर्नमेंट इस बात को मानती है कि इस पवित्र Sengol को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है. Sengol की स्थापना के लिए संसद भवन से अधिक उपयुक्त, पवित्र और उचित स्थान कोई हो ही नहीं सकता. इसलिए जब संसद भवन देश को समर्पण होने वाला है, उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी जी बड़ी विनम्रता के साथ तमिलनाडु से आए अधीनम से सेंगोल को स्वीकार करेंगे और इसे स्पीकर के आसन के नजदीक स्थापित करेंगे. अमित शाह ने कहा कि सेंगोल की स्थापना आजादी की भावनाओं को फिर से जीने के जैसा होगा. 

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