सावन मे शिव पूजा का गूढ़ रहस्य
सावन मे शिव पूजा का गूढ़ रहस्य
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सावन का महिना हर किसी के लिए फलदायी होता है। भगवान शंकर ने स्वयं अपने श्रीमुख से ब्रह्मा के मानस पुत्र सनत कुमार को श्रवण मास की महिमा के बारे मे इस प्रकार बताया था की मेरे तीन नेत्रो मे सूर्य दाहिने, चन्द्र वाम नेत्र तथा अग्नि मध्य नेत्र है। चंद्रमा की राशि कर्क और सूर्य की सिंह है। जब सूर्य कर्क से सिंह राशि तक की यात्रा करते है, तो ये दोनों संक्रांतियाँ सावन मे ही आती है। अतः सावन मास मुझे अधिक प्रिय है। पौराणिक मान्यताओ मे भगवान शंकर की पूजा के लिए सर्वश्रेष्ट दिन महाशिवरात्री, उसके बाद सावन के महीने मे आने वाला प्रत्येक सोमवार है। किन्तु भगवान शिव को सावन का महिना अत्यंत प्रिय है।

ऐसी मान्यता है की इस महीने मे खासकर सोमवार के दिन व्रत उपवास और पूजा पाठ रुद्राभिषेक, कवच, पाठ, जाप इत्यादि से विशेष लाभ होता है। सभी देवों में भगवान शंकर के विषय में यह मान्यता प्रसिद्ध है, कि भगवान भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होते है। एक छोटे से बिल्वपत्र को चढ़ाने मात्र से तीन जन्मों के पाप नष्ट होते है।

सावन महीने के संबंध में प्रचलित एक पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण मास के सोमवार व्रत, एक प्रदोष व्रत तथा शिवरात्री का उपवास जो इंसान करता है, उसकी कोई मनोकामना अधूरी नहीं रहती है। 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के बराबर यह व्रत फलकारी होता है। इस व्रत का पालन कई मनोकमनाओ को पूर्ण करने के लिए किया जा सकता है। महिलाए सावन के 16 सोमवार के व्रत अपने वैवाहिक जीवन की लंबी आयु और संतान की सुख-समृ्दि्ध के लिये करती है, तो अविवाहित कन्याएं इस व्रत को पूर्ण श्रद्वा से कर मनोवांछित वर की प्राप्ति करती है। सावन के 16 सोमवार के व्रत कुल वृद्धि, लक्ष्मी प्राप्ति और सुख -सम्मान के लिये किया जाता है।

शिव पूजन में बेलपत्र का प्रयोग-

भगवान शंकर को जब बेलपत्र से पूजा जाता है तो भोलेनाथ अपने ब भक्तों की मनोकामना बिना कहे ही पूर्ण करते है। बेलपत्र के संबंध में यह मान्यता प्रचलित है, कि बेल के वृक्ष पर जो व्यक्ति पानी या गंगाजल चढ़ाता है, उसे सम्पूर्ण तीर्थ स्थलो की प्राप्ति होती है। वह व्यक्ति भू लोक में सुख भोगकर, शिवलोक में आश्रय पाता है। बिल्व पत्र के वृक्ष की जड़ में भगवान शंकर का निवास होता है। यह पूजन करने से इंसान को सभी तीर्थों में स्नान करने का फल प्राप्त होता है।

संदीप मीणा

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