सद कर्मों का परिणाम..... मानव बना जग में महान
सद कर्मों का परिणाम..... मानव बना जग में महान
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मानव जीवन में कर्मों की प्रधानता ही उसे श्रेष्ठ बनाती है .कर्मों से ही वह अपने  जीवन में सद्गति और  दुर्गति को प्राप्त करता है .  मानव जीवन में उसके कर्मों की ही तो महत्वता है . एक बार एक संत को तंग करने के इरादे से एक व्यक्ति ने दूध के बदले चूना घोलकर एक पात्र में रख दिया। स्वामीजी ने दूध का पात्र देखा और चुपचाप उसे पी लिया.

उस व्यक्ति ने सोचा जल्द ही चूना अपना असर दिखाएगा. लेकिन इसका उल्टा हुआ स्वामीजी को तो कुछ न हुआ, बल्कि उस व्यक्ति का जी मचलने लगा।

वह व्यक्ति स्वामी जी के चरणों में गिर गया. और अपनी गलती की माफी मांगने लगा. तब स्वामी जी ने कहा, 'चूने का पानी भले  ही मैनें पिया हो लेकिन असर तुम्हें भी हुआ क्योंकि इसका एक ही कारण है और वो है कि हम दोनों के शरीर में एक ही आत्मा का वास है। यदि आप दूसरे को कष्ट पहुंचाएगें तो वो कष्ट आपको भी भोगना होगा.

हम अपने जीवन में कोई भी कार्य करते रहते है और उस कार्य में ध्यान नहीं रखते कि हम जो कर रहे हैं, वह नीति के मुताबिक है या नहीं . जब मानव अपने जीवन में बुरे कर्म करता है और उसे उसका परिणाम उस वक्त नहीं मिलता तो वह यह मानता है कि मैने जो भी किया अच्छा किया है. पर ऐसा बिलकुल भी नहीं है. मानव को उसके कर्मों का फल भुगतना ही होता है चाहे यह अच्छा करे या बुरा आज नहीं तो कल इस जन्म में या अगले जन्म में कर्म का लेखा - जोखा तो होता ही है .मानव जीवन में उसके द्वारा किये गए सदकर्मों से ही उसे इस संसार सागर में प्रतिष्ठा और इस जगत से सद गति मिलती है .

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