छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व
छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व
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छठ पर्व के चार दिनों में धार्मिक आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है. लाखों लोग अपने घर परिवार की सुख समृद्धि के लिए इस व्रत का पालन करते हैं और सूर्यदेव और छठी माता की उपासना करते हैं. हमारे हिन्दू त्यौहारों और रीति- रिवाज़ों से कईं धार्मिक मान्यताएं तो जुड़ी ही होती हैं, पर कई विधियों के पीछे वैज्ञानिक पहलू भी होते हैं. छठ पूजा की विधियों का भी ऐसा ही वैज्ञानिक महत्व है जो हम आपको बताएँगे.

छठ पूजा में सूर्योपासना का अत्यंत महत्व है. सूर्य संपूर्ण सृष्टी को जीवन प्रदान करता है. वही नवजीवन का आधार है. उसी कि ऊर्जा से संपूर्ण जगत चलायमान है और रोशन भी. छठ के विधि-विधान व्रती के शरीर और मन को सौर ऊर्जा के अवशोषण के लिए तैयार करता है. कहते हैं कि छठ पूजा की इसी प्रक्रिया के जरिए प्राचीन भारत में ऋषि-मुनि बिना भोजन-पानी ग्रहण किए बिना कठोर तपस्या करने की ऊर्जा प्राप्त करते थे. वे भोजन-पानी से अप्रत्यक्ष तौर पर प्राप्त होने वाली ऊर्जा के बजाए सूर्य प्रकाश के संपर्क से सीधे ऊर्जा प्राप्त कर लेते थे.

 
छठ पर्व कार्तिक मास कि षष्ठी तिथि (छठ) को मनाया जाता है. षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर होता है. इस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं. उसके संभावित कुप्रभावों से रक्षा करने का सामर्थ्य इस परंपरा में रहा है.

इस पर्व में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. कहते हैं कि इन दोनों समय सूर्य को अर्घ्य देने के दौरान इसकी रोशनी के प्रभाव में आने से, कोई भी चर्म रोग नहीं होता और इंसान निरोगी रहता है. साथ ही इससे नेत्रों कि ज्योति भी बढती है. इस प्रकार धार्मिक और वैज्ञानिक आधार होने से छठ पर्व का महत्व और बढ़ जाता है.

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